Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 15
Author(s): Shyamsundardas
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 519
________________ ५०२ नागरीप्रचारिणी पत्रिका कथाओं का समावेश किया गया है। वहाँ स्तूपों की वेष्टिनी पर अनेक पुरुषों की मूर्तियाँ मिलती हैं, जो द्वारपाल के स्थान पर या बोधि वृत्त तथा चक्र के समीप चँवर लिए दिखलाए गए हैं। कलाविदों ने इनको यक्ष का नाम दिया है। डा० कुमार स्वामी यक्षों को उद्भिज देव या उसके रक्षक मानते हैं। उनका कथन है कि यक्ष की राक्षसों से समता नहीं की जा सकती। हिंदू तथा बौद्ध ग्रंथों में यक्ष का नाम मिलता है। यक्ष की तुलना ग्रामदेवता से की गई है। निकाय-ग्रंथों तथा जैन सूत्रों में बुद्ध भगवान को भी यक्ष कहा गया है। संसार की उत्पत्ति जल से हुई, इस विचार-धारा के कारण भरहुत तथा साँची की कला में आभूषण के निमित्त कमल, पूर्ण घट, मछली आदि (जो पानी से पैदा होते हैं ) प्रयुक्त हुए हैं। उद्भिज देव होने के कारण यक्ष का भी जल से संबंध प्रकट होता है। अतएव भरहुत, साँची तथा मथुरा की कला में ( गुप्तकला से पूर्व ) यक्षी की मूर्ति मछली या मकर पर खड़ी वेष्टिनी के स्तंभों पर बनाई गई थी। भरहुत, वेसनगर (साँची) तथा मथुरा में ऐसी अनेक मूर्तियां मिली हैं। डा०.कुमार स्वामी का मत है कि इन्हीं यक्षी मूर्तियों से गुप्तकालीन (१) कुमारस्वामी-यन, भा॰ २, पृ. ३। (२) जैमिनी ब्राह्मण, भा० ३, २०३। (३) अंगुत्तर निकाय, भा॰ २, पृ. ३७, उत्तराध्यायन सूत्र, प. ३, १४-१८ । (४) यन, भा१, प्ले ० ६, नं.१,२। (१) वही, " , "१४, "२; यच, भा॰ २, पृ० ६६ । (६ ) कुमारस्वामी-यक्ष, भा० २,प्लेट १०, नं. २, स्मिथ-जैन स्तूप माफ मथुरा, प्ले. ३६ । वोजेल-कैरलाग माफ मार्केला म्यूजियम, मथुरा, पृ० १५१, ने. J ४२। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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