Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 15
Author(s): Shyamsundardas
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 517
________________ ५०० नागरीप्रचारिणी पत्रिका को देनेवाली बतलाई गई है। इस प्रकार पुराणों में गंगायमुनार की महिमा का सुंदर वर्णन मिलता है। हिदू शाखों के अतिरिक्त बौद्ध जातकों में भी गंगा के पुण्यस्थान-संबंधी धार्मिक यात्राओं का महत्त्व बतलाया गया है । इन उपर्युक्त वर्णनों से प्रकट होता है कि गंगा की प्रार्थना तथा पूजा प्रत्येक संप्रदाय के अनुयायियों द्वारा, बिना किसी भेद-भाव के, होती थी। गंगा तथा यमुना के धार्मिक भाव के विकास की ओर न जाकर मैं प्रस्तुत विषय पर पाठकों का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। इस लेख में यह दिखलाने का प्रयत्न किया जायगा कि भारतीय कला में गंगा तथा यमुना की मूर्तियाँ कब और किस प्रकार बनने लगों। क्या इसकी उत्पत्ति पर किन्हीं अंशों में अन्य मूर्तियों का प्रभाव है ? प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक गंगा तथा यमुना की मूर्तियों के विकास पर प्रकाश डालने का प्रयत्न किया जायगा । ____ डा० कुमारस्वामी का मत है कि पूजा की धार्मिक भावना के साथ साथ मूर्तिकला का भी प्रारंभ हुआ । या यों कहा जाय कि दोनों की उत्पत्ति एक ही मूल से हुई; दोनों को पृथक करना सरल कार्य नहीं है। शिल्पशास्त्र में वर्णन मिलता है कि मूर्तिकार शिल्पकला-कोविद के अतिरिक्त पुजारी हो तथा पूजा-संबंधी वैदिक मंत्रों से पूर्ण परिचित हो। इन समस्त गुणों से युक्त शिल्पकार (.) गंगेति स्मरणादेव क्षयं याति च पातकम् । गंगातोयेषु तीरेषु तेषां स्वर्गोऽक्षयो भवेत् ॥ -पपुराण, अध्याय ६० । गगाथ सरिता श्रेष्ठा सर्वकामप्रदायिनी। -ब्रह्म पुराण, अध्याय ७१। (२) पन पु०, श्र. ४२; मत्स्य पु०, प्र. १०६ । (३) जातक, २।१७।। ( कॅबिज अनु.) (४) डेंस श्राफ शिव, पृ० २५ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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