Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 15
Author(s): Shyamsundardas
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 513
________________ ४-६६ नागरीप्रचारिणी पत्रिका स्वरूप था; पर उनके हाथ का धनुष उनके उस क्षात्रधर्म का परिचायक था जो उन्हें (क्षत्रिय राजा प्रसेनजित् की कन्या) माता रेणुका से प्राप्त हुआ था । कालिदास ने यज्ञोपवीत को केवल ब्राह्मणों के धारण योग्य लिखा है? जिससे उपवीत माना जाता था । पता चलता है कि उनके समय में यज्ञोपवीत ब्राह्मणों का ही चिह्न बहुत प्राचीन समय में ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य तीनों यज्ञोपवीत धारण करते थे। बहुत संभव है कि कालिदास ने इस प्राचीन प्रथा का विरोध न किया हो और उनके कहने का तात्पर्य आध्यात्मिक हो । कदाचित् उनका तात्पर्य यह था कि यज्ञोपवीत ब्रह्मचारी के ब्रह्माचरण अर्थात् वेदाध्ययन आदि का स्मारक और प्रतिज्ञा-सूत्र था । वेदाध्ययन प्रादि ब्राह्मणों का मुख्य कर्म ही नहीं प्रत्युत उस समय तक केवल उन्हों का धर्म रह गया था इसलिये यज्ञोपवीत ब्राह्मणत्व का ही प्रमाण-स्वरूप था । इसी प्रकार क्षात्रवृत्ति - युद्धकर्म आदि - केवल क्षत्रिय का ही हो गया था इसलिये धनुष केवल क्षत्रिय वर्ण का ही परिचायक कहा जा सकता है । शव-मंडन एक स्थल? पर यह उल्लेख मिलता है कि 'यह मंडन ही हमाराअंतिम अर्थात् मृत्यु-मंडन होगा', जिससे विदित होता है कि चिता पर दग्ध करने के पूर्व शव को पुष्पाभरणों और चित्रण आदि से अलंकृत कर लेते थे (विससर्ज कृतान्त्यमण्डनामनलायागुरुचन्दनैधसे । - रघु०, ८, ७१ । क्रियतां कथमन्त्यमण्डनं परलोकान्तरितस्य ते मया । - कुमार०, ४, २२ ) । लोग संध्या के समय बैठकर प्राचीन कथाएँ कहा करते थे और वृद्ध जन ही इसमें अधिक दक्ष माने जाते थे । उज्जयिनी (१) रघु०, ११, ६४ । २ ) अथवेदानीमेतदेव मृत्युमण्डनं मे भविष्यति । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat - मालविका०, ३, मालविका । www.umaragyanbhandar.com

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