Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 15
Author(s): Shyamsundardas
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 505
________________ ४८८ नागरीप्रचारिणी पत्रिका पान एक साधारण व्यसन प्रतीत होता है। मालविकाग्निमित्र में मद्यपान द्वारा उत्पन्न अर्धविक्षिप्तता और उसके दूर करनेवाले मत्स्यपिंड' (एक प्रकार की चीनी) का हवाला है। प्राचीन चिकित्साशास्त्र के ग्रंथों में, मदात्यय-चिकित्सा के प्रकरणों में, मत्स्यपिंड को मदात्यय का निवारक बताया गया है ( देखो, पक्वेक्षुरसप्रकृतिक: सुराविशेषः)। इससे विदित होता है कि मद्यपान भारतवर्ष में खूब प्रचलित था और यह पुष्पों ( विशेषकर मधूक ) से प्रस्तुत किया जाता था। ___ त्यौहार और उत्सव तो प्राय: वही थे जो आज हैं परंतु उनमें से कितने ही आजकल के हिंदू-समाज ने भुला दिए हैं। पुरुहूतध्वज _ वह उत्सव था जो इंद्रधनुष के प्रथम दर्शन के त्यौहार और उत्सव अवसर पर मनाया जाता था और जिसमें इंद्र की पूजा होती थी। दशाह भी एक प्रकार का उत्सव ही था। प्रोषितपतिकाएँ अपने विदेशी पति के कल्याण और शुभागमन के निमित्त कालबलिपूजा करती थों उत्सवों में नगर के राजपथ और प्रासाद तोरण, पताकाओं, पुष्पों और चित्रों द्वारा सजाए जाते थे। रामाभिषेक के समय अयोध्या, शिव के विवाह के समय कल्पित हिमालय नगर और इंदुमती के स्वयंवर के समय विदर्भराज की नगरी, ये सब सुंदर मांगलिक वस्तुओं से सुसज्जित किए गए थे। तोरण रस्सियों में पत्ते गूंथकर द्वारों और दीवारों के सामने बाँधकर बनाए जाते थे जो आज भी उत्सव-दिवस में प्रायः देखे जा सकते हैं। वसंतोत्सव बड़े धूमधाम के साथ होता था, उसमें फूलों का विशेष व्यवहार होता था और नाटक खेले जाते थे। मालविकाग्निमित्र नाटक उसी समय खेला गया था । (1) मालविका०, ३, विदू० । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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