Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 15
Author(s): Shyamsundardas
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 508
________________ वषवर श्राचार भारतवर्ष की सामाजिक स्थिति ४६१ पैदल चलकर पाता था इसलिये उसके मिट्टी लगे पाँव पहले धेो दिए जाते थे। फिर वह कोई अन्य कार्य करता था। कालिदास के ग्रंथों में मुगल राजाओं के हरमों में रहनेवाले खोजो . की भाँति भारतीय राजाओं के अवरोधगृहों की रक्षा करनेवाले वर्षवरों का वर्णन मिलता है। संस्कृति और कला में सुरुचि रखनेवाले विलासी भारतीयों में सामाजिक दोषों की संख्या अधिक होनी चाहिए फिर भी कालिदास के वर्णन से पता चलता है कि देश पाप-रहित " था (जनपदे न गदः),प्रजा धर्मपथ पर चलती थी, राजा स्वयं अपनी सीमा का उल्लंघन नहीं करता था (स्थितेरभेत्ता), वर्णाश्रम-धर्म की रक्षा करता और समाज के अपराधियों को दंड देता था। इस कारण यह बताना कुछ कठिन ज्ञात होता है कि समाज में दुष्टों के रहते हुए और साधारण जनता के विलास-प्रिय होते हुए भी किस प्रकार जनता धर्मपरायण थी। शकुंतला और दुष्यंत का समाज-सीमातिक्रमण स्वयं एक ऐसा अपराध है जो उस समय के प्राचार-शैथिल्य को प्रकट करता है और जिसके कारण दोनों को अनंत कष्ट भोगना पड़ा। कष्ट यह था कि जिस कारण उन्होंने व्यग्रता दिखलाकर शीघ्रता की और समाज-नीति के विरुद्ध आचरण करके आश्रम को अपवित्र किया उसी प्रानंद का वेचिरकाल तक उपभोगन कर सके। समाज में गणिकाओं के अस्तित्व के संबंध में कालिदास के कई उल्लेख हैं। ये नर्तकियों और गायिकाएँ होने के अतिरिक्त प्राज-कल की भाँति वारांगनाएँ भी अवश्य रही होगी। नीचगिरि की गुफाएँ पण्यस्त्रियों के नागरिकों से मिलने के कारण (1) तेन हि वर्णवरपरिगृहीतमेन तत्र भवतः सकाशं प्रापय । -मालविका०, ४। (२) मेघदूत, २७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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