Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 15
Author(s): Shyamsundardas
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 507
________________ ४६० नागरीप्रचारिणी पत्रिका ऊपर बताए हुए आनंद-व्यसनों में ही दोलाधिरोहण के खेल का उल्लेख किया जा सकता है। इसके खेल पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियाँ ही विशेष खेलती थीं। उन्हें झूले से गिरने का भी डर नहीं लगता था (दोलापरिभ्रष्टायाः) । झूले के लिये दोला शब्द का व्यवहार हुआ है और झूला झूलने के लिये 'दोलाधिरोहण' वाक्यांश का, जैसा निम्नलिखित वक्तव्य से विदित होता है- "देव के साथ दोलाधिरोहण का आनंद लेना चाहती हूँ।”—इरावती। श्रीमानों के प्रासादों से लगे उद्यानों में झूले लगे रहते थे जिनमें आनंदप्रिय स्त्री-पुरुष प्रायः झूला करते थे। अन्य स्थल पर दोलागृह' का उल्लेख मिलता है। यह शायद उद्यानों में अथवा गृह के ही किसी कमरे को इंगित करता है जिसका उपयोग झूला झूलने में किया जाता होगा। भारतवर्ष में अतिथि-सत्कार बड़े प्रेम से किया जाता था और यह बड़ा महत्त्वपूर्ण कार्य था। वेत्रासन पर बैठाकर अतिथि की _ अभ्यर्थना करते थे । यह आसन बेत का कोच अतिथि-सत्कार - अथवा कुर्सी था। फिर उसे अर्घादि मांगलिक वस्तुएँ प्रदान करते थे । यह अर्घ अक्षत और दूर्वा आदि का सम्मिश्रण था और देवताओं अथवा बड़े आदमियों की पूजा में प्रयुक्त होता था। इसके अवयवों का अन्यत्र इस प्रकार वर्णन मिलता है-- "प्राप: क्षीरं कुशाग्रञ्च दधि सर्पिः सतण्डुलम् । भव: सिद्धार्थकश्चैव अष्टाङ्गोऽर्घः प्रकीर्तितः ।।" अतिथि के चरण भी धोए जाते थे क्योंकि शायद अतिथि (1) मालविका०, ३, मालविका । (२) वही, ३.। (३) कुमार०, ६,५३ । (४) अतिथिविशेषलाभेन... । फल मिश्रमर्घमुपहार। इद पादोदक भविष्यति ।-अभि. शाकुं०, १, अनसूया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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