Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 15
Author(s): Shyamsundardas
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 491
________________ ४७४ नागरीप्रचारिणी पत्रिका पति की भस्म के साथ जल जाने के लिये प्रस्तुत हो जाती है ! गर्भिणी' रानी अथवा अन्य साधारण गर्भिणी विधवारे सती नहीं हो सकती थी। कालिदास की राय में सती धर्म बड़ा स्वाभाविक है क्योंकि ऐसा तो निर्जीव भी करते हैं, फिर सजीव और तर्कशील मानवों की तो बात ही और है। समाज में स्त्रियों का स्थान उच्च था और उनकी उचित प्रतिष्ठा थी। उनके अधिकार बहुत कुछ आज ही जैसे थे परंतु उस समय उनका विशेष आदर था। बहुत संभव है, स्त्रियों का स्थान "" उनको उच्च श्रेणी की भाषात्मिका शिक्षा न दी जाती हो; परंतु कला के क्षेत्र में तो वे अद्भुत पंडिता थी जैसा मालविकाग्निमित्र नाटक से सिद्ध होता है। शर्मिष्ठा जैसी कला-पारं. गता महिलाएँ कला पर ग्रंथ भी लिख चुकी थी। फिर भी शिवपार्वती के विवाह के अनंतर जब सरस्वती संस्कृत-काव्य-गान करती हैं तब वे शिव से तो शुद्ध संस्कृत में बात करती हैं परंतु पार्वती को मधुर और सरल प्राकृत में आशीर्वाद देती हैं। संभव है, स्त्रियों की भाषात्मिका शिक्षा बहुत न होती हो । ___ समाज में वास्तव में उनके प्रति आजकल की ही भांति कई प्रकार के विचार थे। कोई कोई तो उन्हें जन्म से ही धूर्त समझते थे और यदि स्त्रियों के प्रति दुष्यंत के विचार तत्कालीन समाज के विचारों की घोषणा करते हो तो यह कहा जा सकता है कि लोग उन्हें स्वाभाविक ही प्रत्युत्पन्न मति वाली समझते थे। उनकी (१) रघु०, १६, १५.५६ । (२) अभि. शाकु०, ६ । (३) मालविकाग्निमित्र, २, गणदास । (४) कुमार०, ७, ६० । (५) प्रत्युत्पबमति स्त्रीणमिति यदुच्यते ।-अभि० शाकु०, ५. राजा । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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