Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 15
Author(s): Shyamsundardas
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 490
________________ भारतवर्ष की सामाजिक स्थिति ४७३ मेरे प्रति प्रसन्नवदना दीखती है।" सौभाग्यवती स्त्रियाँ चाहे कितनी भी निर्धन क्यों न हो, कभी भूषण-रहित नहीं होतीं, कुछ न कुछ पहिने ही और कोई न कोई शृंगार किए ही रहती हैं, जैसे चूड़ियाँ (मंगलसूत्र), कुंकुम-चिह्न (सिंदूर), नथ और कंकण आदि । ऐसा प्रतीत होता है कि हिंदू समाज द्वारा आज-काल भी आहत दूर्वाकुर उस समय व्रतानुचारिणी महिलाओं द्वारा बालों में धारण किया जाता था। दूर्वा के उल्लेख से कुछ ऐसा प्रतीत होता है कि उस समय गणपति की बड़ी पूजा होती थी, क्योकि दूर्वा गणपति की ही पूजा में अधिकतर प्रयुक्त होती है। व्रत का आचरण करते हुए व्यक्ति का मानव-जाति के शत्रुओं-काम, क्रोध, मद, लोभ, प्रादि-से अलग रहना आवश्यक है। इसी को प्रकट करने के लिये उज्झित गर्व शब्द का व्यवहार किया गया है। कई संकेतों से ज्ञात होता है कि समाज में विधवाएँ भी थीं। विवाह के अवसर पर वधू का श्रृंगार पतिपुत्रवती स्त्रियाँ ही कर सकती थी। ऐसे अवसरों पर विधवाएँ विधवाएँ और सती प्रथा अमंगलरूपा समझी जाती थों और उन्हें बराबर अलग रखते थे। इससे भी सिद्ध होता है कि विधवाओं की संख्या समाज में थी। अभिज्ञान-शाकुंतल के एक स्थल से ज्ञात होता है कि धनमित्र नामक एक धनी सार्थवाह की कई विधवाएं थीं । सती प्रथा अथवा मृत पति की चिता में उसके शव के साथ जल मरने की रीति भी कालिदास के समय में भारतवर्ष में प्रचलित थी। मृत पति का अनुगमन करनेवाली स्त्रियों का वर्णन कालिदास के ग्रंथों में आया है (प्रमदा: पतिवम॑गा इति)। रति अपने (१) विक्रमो०, ३,१२ । (२) कुमार०, ७, ६ । (३) अभि० शाकुं०, ६, राजा । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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