Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 15
Author(s): Shyamsundardas
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 470
________________ भारतवर्ष की सामाजिक स्थिति ४५३ कल्याणार्थ भी राजा सर्वथा जागरूक रहता था। यह धर्म उसकी स्वेच्छा का नहीं प्रत्युत स्मृतियों के विधान से युक्त कर्तव्य का था। जब जब वर्णाश्रम-धर्म की किसी प्रकार क्षति होती है तब तब कवि कालिदास की लेखनी क्रोधपूर्ण होकर आग उगलने लगती है। समाज में उसकी व्यवस्था के विरुद्ध वे स्वेच्छाचारिता सहन नहीं कर सकते । सचमुच ही सामाजिक व्यस्वथा का प्राण प्राचार है। सेवाधर्म को बड़ी महत्ता दी जाती थी। गो-ब्राह्मण समाज में पूज्य थे। दिलीप द्वारा की गई गो-सेवा' में कवि ने अध्यात्म और गो-सेवा आदर्श भर दिया है। दिलीप गो का एक अकिंचन सेवक है और उसकी गो-सेवा सेवा के क्षेत्र में एक अद्वितीय और अपूर्व प्रादर्श उपस्थित करती है। सेवक की नैतिक अवस्था सेवा के आदर्श नियमों में कोई परिवर्तन नहीं कर सकती थी। चाहे वह राजा ही क्यों न हो उसे अपने सारे अनुयायियों को छोड़कर एक साधारण अनुचर की भांति सेवा करनी पड़ेगी। यह एक प्रकार का व्रत था जिसके प्राचरण के निमित्त मनुष्य को अकेला अग्रसर होना पड़ता था। जो स्वयं सेवक है उसके अनुचर कैसे ? वह तो अपने ही वीर्य से रक्षित है ( स्ववीर्य गुप्ता हि मनोप्रसूतिः)। इसी नीति के अनुसार दिलीप ने अपने अनचरों को छोड़ दिया। गो के पीछे पीछे वह छाया की भाँति वन में बिचरने लगा (विचार)। उसने मुनि की भाँति सिर के बालों को लताप्रतानों द्वारा बाँध लिया (१) रघु०,२। (२) न्यषेधि शेषोऽप्यनुयायिवर्गः।-वही, २, ४ । ( ३ ) व्रताय तेनानुचरेण धेनोः ।-वही। (४) स्थितः स्थितामुञ्चलितः प्रयातां निषेदुषीमासनबंधधीरः । जलाभिलाषो जलमाददानां छायेव तां भूपतिरन्वगच्छत् । -वही, २, ६। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526