Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 15
Author(s): Shyamsundardas
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 476
________________ ४५६ भारतवर्ष की सामाजिक स्थिति धन लेकर अपने देश को प्रस्थान करता था। यह स्वयंवर विवाह का चित्रण है। एक बात यहाँ ध्यान देने योग्य है कि स्वयंवर की प्रथा केवल राजाओं के संबंध में ही प्राप्त होती है। संभव है, यह केवल उन्हीं में प्रचलित रही हो; क्योंकि जन-साधारण में इस प्रथा के प्रचलन का उल्लेख नहीं मिलता और साधारणतया उनमें इस विधि का संपादन है भी बड़ा कठिन। राजाओं की तो संख्या भी थोड़ी थी और इस रीति से कन्या के कुल आदि की प्रतिष्ठा रखी जा सकती थी। जन-साधारण में स्वयंवर की प्रथा तभी संभव थी जब स्वयंवर के अखाड़े में किसी प्रतिज्ञा-विशेष का संपादन किया जाता जिसका उल्लेख रामायण और महाभारत में मिलता है। प्राजापत्य विवाह का उदाहरण हमें कुमारसंभव के सातवें सर्ग में, शिव-पार्वती के विवाह में, मिलता है। शिव-पार्वती का विवाह __ हिंदुओं में आदर्श समझा जाता है। विवाह प्राजापत्य विवाह र में होनेवाली सारी क्रियाओं का वर्णन नीचे दिया जाता है। वर्णन है तो शिव और पार्वती के विवाह का, पर उससे सारी विधियाँ स्पष्ट हो जाती हैं। वह इस प्रकार है पार्वती के पिता हिमालय ने जामित्रि लग्न में शुक्ल पक्ष की एक शुभ तिथि को उसके विवाहार्थ अपने परिजनों के साथ तैयारियों की । इसके निमित्त राजमार्ग चीनांशुक की बनी पताकाओं और सुंदर चमकीले सुनहरे तोरणों से सुसजित किया गया । (१) रघु०, ७, ३२ । (२) अथौषधीनामधिपस्य वृद्धौ तिथी च जामित्रगुणान्वितायाम् । समेतबन्धुहिमवान्सुताया विवाह दीपाविधिमन्वतिष्ठत् ॥ -कुमारसंभव, ७, १ । (३) सन्तानकाकीर्णमहापथं तच्चीनांशुकैः कल्पितकेतुमालम् । भासोज्वलत्काञ्चनतोरणानां स्थानान्तर स्वर्ग इवावभासे ॥ -वही, ७, ३। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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