Book Title: Nagor Ke Vartaman Aur Khartaro Ka Anyaya Author(s): Muktisagar Publisher: Muktisagar View full book textPage 5
________________ न हो जाय वहाँ तक इन अप्रतिष्ठित पगलियों को हीरावाड़ी के मन्दिर की एक कोठरी में बन्द कर दिया जाय । इस पर कई लोग कहने लगे कि इन पगलियों को खरतरों के उपाश्रय या दादावाड़ी में तथा रूपचन्दजी के मन्दिर में रख दिया जाय कारण हीरावाड़ी के मन्दिर में रखने से कभी न कभी केश हुये बिना न रहेगा ? पर खरतर वालों का आग्रह हीरावाड़ी के मन्दिर में रखने का रहा । इस पर तपागच्छ वालों ने अपनी उदारता के कारण खरतरों का कहना स्वीकार कर लिया। बस 'पगलिया हीरावाड़ी के मन्दिर की एक कोठरी में रख श्री संघ की ओर से उस कोठरी के ताला लगा उस पर मिट्टी का थेबा लगा चाबी बडे मन्दिरजी में श्री संघ की कमेटी में सुपर्द करदी कि जब तक सकल श्री संघ इस पगलिया के विषय में एक मत न हो जाय कोई भी व्यक्ति कोठरी को नहीं खोल सकेगा । और श्री संघ की प्राण भी दीरादो ऐसा करने से संघ में शान्ति हो गई। __हीरावाड़ी के मन्दिर के पास धाड़ीवालों की खुली जमीन पड़ी थी। उन्होंने वह जमीन खरतर गच्छ वालों को इस गरज से भेंट दे दी कि इस जमीन में खरतर गच्छ वाले एक छत्री बना कर दादाजी का पगलिया स्थापित कर दें। जब जमीन खरतर गच्छ वालों के अधिकार में आगई तब उन्होंने श्री संघ से कहा कि दादाजी के पगलियों के लिये छत्री तो हम पास की जमीन में बना लेंगे पर मन्दिरजी की भीत फोड़ कर एक दरवाजा इस जमीन की भोर निकलवा दीजिये । श्री संघ ने कहा कि दादाजी के पगलिया स्थापन में हम सब शामिल रहेंगे पर मन्दिरंजी की भीत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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