Book Title: Nagor Ke Vartaman Aur Khartaro Ka Anyaya Author(s): Muktisagar Publisher: Muktisagar View full book textPage 9
________________ ( ९ ) हुए, इधर तपागच्छ वाले भी व्याख्यान में थे ही इन दोनों का रंग ढंग देख मुनि श्री ने यह हुकम फरमा दिया कि मैं जानता हूँ कि आज आप लोग किसी और ही इरादे से एकत्र हुए हैं, पर, याद रहे कि मेरे व्याख्यान में बिना मेरी इज़ाजत कोई व्यक्ति को एक शब्द भी बोलने का अधिकार नहीं है । यदि आप लोगों को कुछ करना है तो दूसरे मकान में चले जावें इस हालत में सब लोगों की उम्मीद मन की मन में ही रह गई और दोनों तरफ के अप्रेसर लोग उठकर पास के उपासरे में चले गये और वहाँ पगलियों के विषय में बहुत कुछ वादविवाद होता रहा, पर वे एक निश्चय पर नहीं आ सके । इधर व्याख्यान बचता ही रहा । जब व्याख्यान उठा तो श्रीमान सुखलालजी समदड़िया जो दोनों ओर की शान्ति को चहाने वाले एक मशहूर व्यक्ति हैं उपासरे में गये और दोनों की बातों को ध्यान पूर्वक सुन लिया । श्रीमान समदड़ियाजी ने खरतर गच्छ वालों को यों समझाया कि मन्दिर, मूर्त्ति और पगलिया इसलिये स्थापित किये जाते हैं कि उससे जनता के हृदय में धर्म और भावना बढ़े धर्म भावना तब ही बढ़ सकती है जब कि सकल श्री संघ में शान्ति बनी रहे । ias सम्मति से काम किया जाय । अतएव आप दोनों पार्टी वाले अपने २ हट को दूर करदें और किसी मध्यस्थ मार्ग को स्वीकार करें कि संघ में शान्ति बनी रहे । इस पर खरतरों ने कहा कि आप ही बतलाइये कि वह मध्यस्थ रास्ता कौनसा है । समदड़ियाजी ने कहा कि १२ वर्ष पूर्व आप हीराबाड़ी के मन्दिर में दरवाजा निकाल कर पास की जमीन में छत्री बना कर दादासाब का पगलिया स्थापित करना चाहते थे पर दपागच्छ वाले ने मन्दिर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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