________________
पर गये हुए थे। बस! खरतरों को ठीक मौका मिल गया। उन्होंने श्री संघ की आण दिराई जिसकी भी परवाह नहीं की और आश्वन बद १० के रोज दादाजी की कोठरी के किवाड़ चढ़ा दिया । तपागच्छ वाले शान्ति से देख रहे हैं कि आगे चलकर
दिया । तपागा क्या करते हैं। आपके चमत्का
___ धन्य है गुरुदेव ( ! ) आपको, आपके चमत्कारों को और
आपकी प्रकृति को। आपने अपने जीवन में तो जैन शासन में खूब ही क्लेश कदाग्रह फैला कर हजारों नहीं पर लाखों में जहर बैर बढ़ाया और मरने के बादभी आज पर्यन्त हम लोगों को शान्ति का श्वास नहीं लेने दिया और भविष्य में भी आप क्या-क्या करेंगे यह तो भविष्य के गर्भ में ही है । यदि ऐसा नहीं होता तो क्या आपके लिए कोई दूसरा स्थान ही नहीं था कि आप इस प्रकार एक कोठरी में बैठते और हमारे भाई भाइयों में इतना जहर बैर बढ़ाते ? गुरुदेव ! यदि आप स्वयं यहाँ से उठकर नहीं जा सकते हो तो आप मुनीचन्दजी को फिर परचा देकर कह दें कि अरे खरतरो तुम मुझको एक कोठरी में बैठा कर आपस में क्यों झगड़ते हो ? मैं मन्दिर की कोठरी में एक क्षणभर भी ठहरना नहीं चाहता हूँ। मुझे उठाकर दादाबाड़ी जो मेरा धाम है वहां बैठा दो और तुम तपाखरतरा सब आपस में मिल जुल कर मेरी पूजा किया करो क्योंकि मैं किसी एक गच्छ या समुदाय में बिका हुपा नहीं हूँ इत्यादि कह कर संघ में शान्ति बरताइये इसमें ही आपका यश और पजा है। __ अंत में मुझे इतना और कह देना है कि इस लेख में जो जो बातें मैंने लिखी है वे खूब शोध खोज कर पूर्ण सोच विचार कर संक्षिप्त में ही लिखी है क्योंकि इसका कलेवर मनसा से भी
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com