Book Title: Nagarkot Kangada Mahatirth
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Bansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti

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Page 23
________________ ५. कोठीपुर ६. देपालपुर पत्तन : वर्तमान में देवालपुर । यहाँ कई जिन मन्दिर थे । वस्तुतः सारे जालंधर त्रिगर्त में प्रायः हर गांव में मन्दिर थे । उपरोक्त तो केवल जो यात्री संघ के मार्ग में पड़ते थे उनका विवरण है । इनके अलावा इन्द्रापुर के पार्श्वनाथ जिनालय, नन्दपुर के शांतिनाथ जिनालय, सिंहनद में पार्श्वनाथ जिनालय, तलपाटक में पार्श्वनाथ जिनालय, लाहड़कोट में जिनमन्दिर, कीरग्राम ( बैजनाथ पपरोला ) जो कांगड़ा से ३५ मील दूर स्थित है - में महावीर स्वामी का मन्दिर, किला नूरपुर में किले के अन्दर विशाल जैन मन्दिर जो अभी ध्वस्त अवस्था में है । यह पठानकोट से ९ मील पर है । वहाँ भी जैन यात्री संघ के जाने का उल्लेख प्राप्त है । ढोलबाहा- जिनौड़ी-यह होशियारपुर के निकट है यहाँ अनेक जैन मन्दिर थे । खंडहरों से प्राप्त अनेक जिन प्रतिमाएं आदि होशियारपुर के विश्वेश्वरानन्द वैदिक संस्थान में सुरक्षित हैं । : यह चहुँ ओर पहाड़ों से घिरा स्थान है । यहाँ महावीर भगवान का मन्दिर व जैनों की घनी आबादी थी । जैन मंदिरों एवं इनसे सम्बन्धित इतिहास की जानकारी के लिए आवश्यक है कि समय-समय पर गये यात्री संघ, साधु समुदाय जिन्होंने इसके लिए प्रेरणा दी व संघ में साथ गये, द्वारा रचित स्तवन, रास, सज्झाय, विज्ञप्तिपत्र आदि जो उपलब्ध हैं उनका विस्तृत मनन करें । अतः उपलब्ध सामग्री पर विस्तार पूर्वक विवेचन किया गया है जो कि प्राप्त इतिहास की आधार शिला है । महोपाध्याय जयसागर पन्द्रहवीं शताब्दी के महान् प्रभावक और विद्वानों में महोपाध्याय जयसागर जी का स्थान बड़ा महत्वपूर्ण है आप दरड़ा गोत्रीय आसराज के पुत्र और आबू खरतरवसही के निर्माता सं० मंडलिक आदि के भ्राता थे । आपने बाल्यकाल में श्री जिनराजसूरि जी से दीक्षा ली तब आप का नाम ४ ] Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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