Book Title: Nagarkot Kangada Mahatirth
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Bansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 150
________________ ॥ घात ॥ अह संघाहिवु सधरु सुविचारु, संघाहिवु सुगुणनिधि संघु मेलि भट्टणयर हूंतउ । नागउरि गुरि तिलक किउ संघपूज अति सुजस पत्तउ । साचउरिहिं सिरि वीरजिण भुवणिहि न्हवण विसालु। इणि परि सदरथि भुजबलिहिं भिड़ि भंजिउ कलिकालु ॥१॥ द्वितीय भाषा रतनपुरिहिं सोलमउ जिणिदु पणमिउ दुह-हरणु जिराउलि पहु पासनाहु निरखिउ सुह-करणु त्रिविध प्रदक्षण त्रिविधपूज त्रिकरण-संजुत्तो खीमागरु मण-हरसियउ दाणि घण जिम वरिसंतो॥१॥ महा पूज धज अनइ सार आवारीय भंडई खोमचंदु संघवइ रोरु दूथिय जण खंडइ आबू डूंगरि धवलि पाज हेलइ आरूहए देवलवाडउ देखि संघु हियड़इ गहगहए ॥२॥ विमलदंडनायक - विहारि रिसहेसरू नमियउ लूणिग वसही नेमिनाहु आणदिहि न्हवियउ पीतलमउ झाझण-विहारि मरुदेवी-नंदणु आगलि हय आरुहिउ विमलु देवी आणंदणु ॥३॥ विहु भुवणिहि जे जगति - माहि देउलिय जिणंद ते सवि पूजिय पावहरण फेडण दुह - कंद श्रीमाता आगलि विठ्ठ रिसिय तिरक्खी डूंगर - विवरिहिं अंचि देवि अरबुद मन हरखी ॥४॥ पूज अवारी धजा माल अनु इंद्र महोच्छव पमुह सुकिय किय खीमचंद संघाहिवि नव नव सिरीपालु परबतु अनइ बोहिथु भिमसीह च्यारि महाधर सधरपणइ थापिया अबीह ।।५।। [ १३१ www.jainelibrary.org Jain Educationa International For Personal and Private Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158