Book Title: Nagarkot Kangada Mahatirth
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Bansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti

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Page 156
________________ संघपति खीमचंदने १ श्रीपाल २ पर्वत ३ बोहिथ और ४ भीमसिंह को संघ के महाधर स्थापित किए। भंडारी पोपउ, जिणियउ, सिलहत्थ और पारस को संघ के पच्छेवाणु (पृष्ठरक्षक) बनाए। अचलेश्वर, वशिष्ट, मन्दाकिनी आदि स्थानों का अवलोकन कर संघ ने रैवतगिरि की ओर प्रयाण किया। धवली में वीरप्रभु, बीजोय में शान्तिनाथ, कोली, वरकुलि, थीराउद्द, सिवराण, तिरिवाड, क्रमशः जाकर संघ ने चार जिनालयों को भक्ति पूर्वक वंदन किया। झंवाडा में कुमारविहार स्थित पार्श्वनाथ को वंदन कर, नेमिनाथप्रभु के दर्शनों की प्रबल भावना से संघ अग्रसर होकर वज्जाणा, वढवाणा, जाकर शांतिनाथ व वद्ध मान तथा साहेलय (सायला) में वीर नमन कर सिधर आये। खीमचंद संघपति ने यहाँ मेघ को बुलवा लिया। जूनागढ़ पहुंचकर संघपति ने दक्षिण कर से हेम वृष्टि की। राणा महीपाल से भेंट कर सम्मानित हुआ। रैवतगिरि की पाज चढ़कर नेमिनाथ प्रभु के वज्रमय बिम्ब को प्रणाम किया। और गजेन्द्रपद कुड में स्नान किया। तीनों कल्याणक स्थानों में जिनेश्वर-बिम्बों को नमन कर, शत्रुञ्जयावतार मंदिर में आदिनाथ, मरुदेवी, कवड़यक्ष का वन्दन कर, राजुल-रहनेमि गुफा, अम्बाशिखर, अवलोयण शिखर जाते, शाम्ब-प्रद्य म्न शिखर की यात्रा कर नेमिजिनगृह आये। महाध्वजारोपण, दान-पुन्य, अवारित सत्र, रास, भास नृत्यादि भक्ति कर वापस जूनागढ़ आये। फिर मंगलउर में नवपल्लव पार्श्वनाथ, देवपट्टण ( देवका पाटण) में चंद्रप्रभ को नमन कर, कोडीनार में अंबिका के दर्शन कर, दीव बंदर, ऊना आये । घृतकल्लोल, महुआ, ताराझय (तलाजा) और घोघा में नवखण्ड पार्श्वनाथ, कीकर वालूकड में ऋषभदेव महावीर को वंदन करके संघ पालीताना पहुंचा। ___ महातीर्थ शत्रुजय गिरिराज पर चढ़ते प्रथम नेमिनाथ प्रभु के दर्शन कर मइंगल ( हाथी ) आरोहित मरूदेवी माता को वंदनकर, कवड़ यक्ष को बधाया। फिर अनुपम सरोवर का जल कलश भर के प्रतोली में प्रवेश किया। भक्ति सिक्त हर्षाथ पूर्ण नयनों से तिलख तोरण और पाउड़िआलह आरोहण कर जगत पति जिनेश्वर अदबुद अजित शान्ति आदीश्वर [ १३७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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