Book Title: Nagarkot Kangada Mahatirth
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Bansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti

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Page 110
________________ हमारे संग्रहस्थ गुटके में श्री सुशम्म नृपति वर्णन छंद (गा - ७९ ) के बाद दी हुई सूची १ भूमिचन्द्र २ सोमचन्द्र ३ असमर्क ४ अजगर्त ५ सुस ६ सूर्य स ७ देशलचन्द ईशानचन्द्र ९ वजड़चंद ११ द्वितीयचंद १२ अश्वस्थाम १३ खङ्गशालि १४ गोरचंद १५ कल्याणचन्द्र १६ आसचन्द १७ साल्हादचन्द १८ वसुधाचन्द्र १९ श्रीचन्द्र २१ जयसिंह २२ वल्हण २३ जयत् २४ पृथ्वीचन्द्र २५ अपूर्वचन्द Jain Educationa International २६ रूपचंद्र २७ त्रैलोक्य चन्द्र २८ सिंगारचन्द्र ३१ कर्मचन्द्र ३२ संसारचन्द्र ३३ देवांगचन्द्र ३४ नरेन्द्रचन्द्र ३५ सुवीरचन्द्र २९ अवतारचन्द्र ३० मेघचन्द्र १० नाहड़चन्द २० उदयचन्द्र त्वं देव त्रिदशेश्वराच्चितपदस्त्वं विश्वनेत्रोत्सवः त्वं लोकत्रय तारणैकचतुरः त्वं कामदर्पापहः त्वं कालत्रय जीव भाव कथकः त्वं केवलो द्योतकः त्वं कर्मारि विनाशनो प्रतिभटः त्वां नो गतिं सन्मतिः ॥ १ For Personal and Private Use Only ३६ रामचन्द्र ३७ धर्मचन्द्र ३८ जयचंद्र ३९ विधीचन्द्र ४० त्रिलोकचंद्र नगरकोट- कांगड़ा की जालंधरी मुद्राएँ काँगड़ा के पहाड़ी राज्य पर महाभारत काल से लगभग अंग्रेजी शासन होने तक राजा सुशर्म के वंशजों ने चिरकाल शासन किया था। उनके पास अपार स्वर्ण रजत और रत्नों का भण्डार था जिसे अत्याचारी यवनों ने जी भर कर लूटा जिसका लेखा जोखा करना गणित से बाहर का विषय है । कांगड़ा की अपनी एक टकसाल थी और राज्य में तत्कालीन राजाओं के सिक्के चलते थे । सुलतान अलाउद्दीन खिलजी के मंत्रिमण्डल में विविध विभागों के अधिकारी रहकर चन्द्राङ्गज परम जैन ठक्कुर फेरू नामक घांधिया श्रीमाल श्रावक ने विविध वैज्ञानिक विषयों के ७ ग्रन्थों की रचना की थी जिनमें सं० १३७५ वि० में दिल्ली टंकशाल में कार्य स्थित रहकर द्रव्य परीक्षा नामक महत्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना की थी जिसकी गाथा १०९-११० [ ९१ www.jainelibrary.org

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