Book Title: Nagarkot Kangada Mahatirth
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Bansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti

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Page 111
________________ में उस समय प्राप्त जालंधरी मुद्राओं का वर्णन किया है। उस समय जो भी प्रचलित मुद्राएँ नाणावट परिवर्तनार्थ दिल्ली में आतो थी उनका वर्णन निम्नोक्त माथाओं में है। जालंधरी वडोहिय जइतचंदाहे य रूपचंदाहे रुप्प चउ तिन्नि मासा दिवढसयं दुसय टंकिक्के ॥१०॥ अर्थात्-जालंधरी वडोहिय मुद्राएँ 'जइतचंदाहे' और 'रूपचंदाहे' हैं। जइतचंदा हे मुद्रा में प्रतिशत चार मासा चाँदी है और १५० के भाव है। रुपचंदाहे मुद्रा में तीन मासा चाँदी है और टंके की दो सौ का भाव है। तिनि सय इक्किटंके सीसड़िया हुइ तिलोयचंदाहे। संतिउरी साहे पुण चारिसया इक्कि टकेण ॥११०॥ अर्थात्-सीसड़िया मुद्रा तिलोकचन्दाहे का भाव टंके की तीनसौ का है तथा सांतिउरीसाहे मुद्रा का भाव चारसौ का मूल्य एक टंका है। प्र० १५० जइतचंदाहे १०० मध्ये रूपा तोला मासा ४ प्र० २०० रूपचंदाहे १०० , , तो० मासा ३ प्र.३०० त्रिलोकचंदाहे १०० ,, , , , ३ प्र० ४०० सांतिउरी साहे , मध्ये , , , ३ यहाँ बडोहिय और सीसड़िया जालंधरी मुद्राओं का वर्णन आया है। इससे राजा जइतचन्द रूपचंद और त्रिलोकचंद का शासन काल सं० १३७५ ( ग्रन्थ रचना) से पूर्व का निश्चित है ही। सांतिउरी साहे चौथी मुद्रा (सीसड़िया) किसी सांतिपुर नगर को टकसाल के सम्बन्धित मालूम देती है अन्वेषणीय है। यह ग्रन्थ सं० १४०३ की हस्तलिखित प्रति से मूलरूप से सभी ग्रन्थों को जोधपुर से तथा मेरे द्रव्य परीक्षा का सानुवाद प्रकाशन वैशाली प्राकृत और जनोलोजी संस्था से हुआ है। इस प्रमाण से भी पाश्चात्य विद्वानों की शोध काल्पनिक प्रमाणित होती है। ९२ 1 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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