Book Title: Nagarkot Kangada Mahatirth
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Bansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
View full book text
________________
जिणवर धम्मि मग्गि संलोणउ जसु जसु देसिहि भमइ ऊडीणउ । दाणि पुणि संथुण्ण खमावरु नाहड़चंद चंद जिम सुइयरु ॥२८॥ एक रयणि पासाउ निपाइवि रिसहुनाहु अंबिक ओहि ठाइवि । कंगडु दूग्गि तित्थ रएविणु सग्गिपत्त नाहड़ विहसेविणु ।।२९॥ नाहड़चंद नरिंदस्स नंदणो सत्रु विंद खय करणो असमत्थामा नरवइ रस विदो सव्व कत्थाणं ॥३०॥ असमत्थामा नरवइ वरो गोडनाहस्स दप्पं भंजित्ता जं विषम समरे पि ति मग्गं सरित्तु । लूणादेवी कमल वयणा तस्स पूआल रत्ता वीवाहित्ता नियपुरवरं दित्त तेऊ समीए ॥३१॥ तयणु नरवरिंदो खग्गसाली विलासी वसुह रमणि भावा हि दालिद्द नासी। विबुह कविवराणां नीइ कम्मेहि यत्तो सयल सुरवराणं जेम इन्दो महिंदो ॥३२॥ गोरी मयंको तणयंग जम्मा वसुन्धरा भोगरओ अणिच्च । ईसाण देवस्स पएसु भत्तो विरत्त चित्तो भववास मग्गे ॥३३॥ गोरी मयंकस्स तणुप्पसूओ इंदाभिहाणो नरनाह राओ। सुरिंद वग्गाण सुहंकरो जो किच्चा खयं दाणव णायकाणं ॥३४॥ इंदचंद तणओ. भव भत्तो सुद्ध धम्म करणे अणरत्तो। दाण माण करि रंजिय चित्तो सत्रु भग्गि परिपोसिय मित्तो ॥३५॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158