Book Title: Nagarkot Kangada Mahatirth
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Bansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti

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Page 92
________________ २१. जिसको चिदानंद की अखण्ड धारा रूप माना गया है जो आश्रितों के भय को नष्ट करने वाला है, जो ब्रह्म की तरफ ले जाने वाला है, जो दयात्म रूप है, उसी का यह शरणागत आपके दोनों पैरों की शरण ग्रहण करता है इसे कृत-कृत्य करें। २२. जगत के कष्टों को नष्ट करने वाले यगादि जिन की जय हो। जिसका अनुसरण करके योगीजन भी सागर को पारकर लेते हैं। भव्यजनों के हृदय में जिसका निवेश है उसी योगी की मैंने हारबन्ध छन्दों में स्तुति की है। २३. हे वृषभेश ! आपकी स्तुति के कारण आज मेरा जन्म सफल है, जीवन सफल है, वाणी सफल है। असमर्थ होता हुआ भी प्रयासपूर्वक आपकी स्तुति करने के कारण मैं आपके हृदयगत तो हो ही गया हूँ। २४. सुकृत योग से मैंने इन हारबन्ध छन्दों में कोट्टाल नगर में स्थित आदि नाथ प्रभु की स्तुति की है। उस आदिनाथ को मैं मेघिराज विनम्रतापूर्वक वन्दन करता हूँ। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ___www.jainelibrary.org

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