Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

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Page 6
________________ मूर्ख ॥ ४ ॥ 9999990099999066তত लोभी राजापासेथी लाभ मेळवावानी इच्छावाळो (३३), दुष्ट राजापासेथी न्याय मेळववानी आकांक्षा करनारी (३४), कायस्थजातिना मनुष्यसाथै स्नेह राखवानी आशावाळो (३५), अने निर्दय मंत्रिथी निर्भय रहेनारो (३६) मूर्ख आणवो. ॥ १० ॥ कृत प्रतिकार्यार्थी । नीरसे गुणविक्रयी || स्वास्थ्ये वैद्यक्रियान्वेषी । रोगी पथ्यपराङ्मुखः ॥११॥ करेला उपकारने नही जाणनारपर उपकार करनारो ( ३७ ), सांभळवामाटे जेने रस न पडतो होय, तेवा मानसपासे पोताना गुणो कहेनारो ( ३८ ), निरोगी छतां वैद्यक्रियानी गवेषणा करनारो, एटले शोकने खातर विविध प्रकारनां स्वादिष्ट चूर्ण आदिक औषधो खानारो (३५), अने रोगी छतां पथ्यथी वेगळो रहेनारो (४०) मूर्ख जाणवो. ॥। ११ ॥ लोजेन स्वजन त्यागी । वाचा मित्रप्रदासकृत् ॥ लाजकाले कृतालस्यो । महर्द्धिः कलप्रियः ॥१२॥ लोभने वश यइ पोताना स्वजनोनो त्याग करनार (४२), लाभ मळवाने समये आळस करनारो ( ४३ ), अने घणुं धन छत कंकास करनारो (४४) मूर्ख जाणो ।। १२ ।। राज्यार्थी गणकस्योक्तेर्मूर्ख मित्रकृतादरः ॥ शूरो ज्योतिषीना वचनथी राज्य मेळववानी अभिलाषा करनारी दुर्बलवोधाय । दृष्टदोषांगनारतः ॥ १३ ॥ (१५), मुर्ख मित्रपते आदरसत्कार करनारो (४६), शतकम् ॥ ४ ॥

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