Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ मर्ख បិចចិ: ព្វថ្ងៃថ្មីថ្មីថិំ करवाने तत्पर थयेलो (६०) मूर्ख जाणवो. ॥ १६ ॥ शतकम् नित्यं निष्फलसंचारी । युद्धप्रेक्षी शराहतः ॥ शयी शक्तविरोधेन । स्वल्पार्थः स्फीतडंबरः ॥१७॥ हमेशा प्रयोजनचिना ज्या त्यां फरनारो (६१), बाणआदिकथी घायल ययाछता यतुं युद्ध जोवा उभनारो (६२), बलवानसाचे वैर करीने निश्चितपणे निद्रा करनारो (६३), अने स्वल्प धन छतां महोटो आडंबर राखनारो [६४) मूर्ख जाणवो. ॥ १७॥ || पंमितोऽस्मीति वाचालः॥सुनटोऽस्मीति निर्भयः॥ प्रफुल्लितोऽतिस्तुतिनि-मर्मनेदी स्मितोक्तिभिः।१ || हुं विद्वान् छु, एम मानीने घj घणु बोलनारो (६५), हुं सुभट छु, एम मानीने हमेशा निर्भय रहेनारो (६६), | कोइये धणी स्तुति करवायी फुलाइ जनारो (६७), अने मश्करीभरेला वचनोवडे परना मर्मस्थानोने मेदनारो (६८) | मूर्ख बाणवो. ॥ १८ ॥ दरिदस्तन्यासार्थी । संदिग्धार्थे कृतव्ययः ॥ खव्यये लेख्यकालस्यो। देवाशात्यक्तपौरुषः ॥१०॥ दरिद्रीहस्तक द्रव्यनी थापण राखनारो (६९), लाभ मळवानो जेमा संशय होय, तेवा व्यापारआदिकमां खर्च करनारो foll॥६॥ | (१०), पोताना खर्चना संबंधमा हिसाव राखवामां आळसवाळो (७१), अने लाभ अलाभ तो दैवाधीन छे, एम विचारी 00000000000000000

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 154