Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ करनारो (१९) अने भोजन वखते क्रोध करनारो (२०) मूर्ख जाणवो. ॥६॥ शतकम् कीर्णार्थः स्तोकलानेन । लोकोतः विष्टसंवृतः॥ पुत्राधीने धने दीनः । पत्न्यायत्तार्थयाचकः ॥७॥ ॥३॥ ___ स्वल्प लाभमाटे धनने विखेरनारो (२१), लोकोना बचनधी खीज धरनारो ( २२ ) पुत्रने धन सोंपी देइ दीनता ध. 15 | रनारो (२३), अने स्त्रीने स्वाधीन करेलां धननी तेणीनी पासेथी फरी याचना करनारो (२४) मूर्ख जाणवो. ॥७॥ नार्याखेदात्कृतोछाहो । पुत्रकोपात्तदंतकः ॥ कामुकस्पर्धया दाता । गर्ववान् मार्गणोक्तिन्निः ॥७॥ एक स्त्रीथी कंटाळीने चीजी स्त्रीसाथे विवाह करनारो (२५), पुत्रना क्रोधथी तेनुं खून करनारो (२६), कोइ कामी पुरुषनी ||पूर स्पर्धा करीने (वेश्याआदिकने) धन आपनारो (२७), अने याचकोना मिष्ट वचनोथी अहंकार करनारो (२८) मूर्ख जाणवो. ॥८॥ धीदर्पान्न हितश्रोता। कुलोत्सेकादसेवकः॥दत्वार्थान् दुर्लभान् कामी । दत्वा शुल्कममार्गगाए। | पोतानी बुद्धिना अहंकारथी (परना) विकारी वचनोने नही सांमळनारो (२९), पोताना उंचां कुलना अभिमानथी 8 (राजाआदिकनी) नोकरी नही करनारो (३०), दुर्लभ प, धन आपीने काम सेवनारो (३१), अने जगात- भर्याछता पण गुप्त मार्गोथी जनारो ( ३२ ) मूर्ख जाणवो. ॥९॥ || लुब्धे सुजुजि लानार्थी। न्यायार्थी दुष्टशास्तरि ॥ कायस्थे स्नेहबकाशः । क्रूरे मंत्रिणि निर्भयः॥१०॥ ||8|| 0000000000000000000 000000000000000000 २ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 154