Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

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Page 4
________________ मूर्ख - ॥ २ ॥ 9939000 (३), अने कपटयुक्त आडंबर मां प्रतीति राखनारो (४), मूर्ख जाणो ॥ २ ॥ द्यूतादिवित्तबद्धाशः । कृष्याद्यायेषु संशयी ॥ निर्बुद्धिः प्रौढ कार्यार्थी । विविक्तर सिको वणिक् ॥३॥ - जुगार आदिकथी धन मेळववानी आशावाळो (५), खेतीआदिकनी पेदाशमां संशय करनारो (६), बुद्धिरहित छतां महान् कार्य करवानी इच्छावाळो (७), अने व्यापारी छतां इंद्रिओना विषयोमां आसक्त थयेलो (८) मूर्ख जाणवो. ॥ ३ ॥ ऋणेन स्थावरक्रेता | स्थविरः कन्यकावरः ॥ व्याख्याता चाश्रुते ग्रंथे । प्रत्यक्षार्थेऽप्यपहुवी ॥४॥ करज करने स्थावर मिल्कत बेचाथी लेनारो ( ९ ), वृद्ध होवाळतां कन्यासाथे लग्न करनारो (१०), नही सांभळेला शास्त्रनुं व्याख्यान करनारो ( ११ ) अने प्रत्यक्ष देखाता पदार्थने पण नही माननारो ( १२ ) मूर्ख जाणो ॥ ४ ॥ चपलापतिर्थ्यालुः । शक्तशत्रोरशंकितः ॥ दत्त्वा धनान्यनुशयी | कविना इठपाठकः ॥ ५ ॥ कुलटा खीनो स्वामी छत ( तेणीना दुराचारमाटे ) ईर्ष्या करनारो (१३), बलवान शत्रुधी पण शंका नहीं राखनारो (१४), धन आपीने पाळथी पश्चात्ताप करनारो ( १५ ), अने कविनसाथे हटवाद करनारी (१५) मूर्ख जाणवो ॥ ५ ॥ प्रस्तावे पक्का | प्रस्तावे मौनकारकः ॥ लाभकाले कलहक- न्मन्युमान् भोजनक्षणे ॥ ६॥ अवसर विना चतुराइयी भाषण करनारी (१७), अवसर आव्यो मौन रहेनारो (१८ ) लाभ थवाने अवसरे केश शतकम् ॥ २ ॥

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