Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 11
________________ कीर कथानक पूण्य की प्रबलता पर अम्वीचि राजा का दृष्टान्त कीरकथानक-(चाल) अनुपम्वा देवी कथानक चालूकुंतसिंह का वर्णन कुबेरदत्त का उन्मत्त हाथी को वश करना और कुमार का मंगलपुर में आगमनविश्वकंत राजा के आदेश से कुमार का विश्वपुर में आगमन कूबेरदत्त का राज्यारोहण और विश्वकान्त राजा की दीक्षा कुबेरदत्त को अमरसिंह नामक पुत्र की प्राप्ति, कुबेरदत्त की विश्वकान्त मनि के समीप दीक्षा, कुबेरदत्त मुनि का अन्तिम समय में संलेखन पूर्वक मृत्यु चतुर्थ देव भव- सनत्कुमार देवलोक में देवरूप मे उत्पत्ति १६७५-१८२५ १८२६-२०४९ २०७५-२२७१ २२७२-२८७४ २५७९-२८७४ २८९८-३०५९ ३०६०-३०६६ ३०६७-३०८४ ३०८५-३१४६ ३१४७-३१४८ ३०४९-३०९२ ६. पंचम भव वज्रकुण्डल वज्रकुंडल का नगर, उसके माता-पिता, जन्म एवं यवराज पद की प्राप्ति का वर्णन वज्र कुंडल और वीरसेन की मैत्री और वीरसेन द्वारा निजचरित्र कथन और वीरमेन की वज्रकृण्डल द्वारा युद्ध में सहायता, जिनमित्र द्वारा जिनपूजा महात्म्य पर चन्द्रकीर्ति नप की कथा कहना चन्द्रकीर्ति नप की रानी प्रभावती देवी का पूर्वजन्म राजमती की कथा चन्द्रकीर्ति नप की कथा चालवीरसेन को अपने पिता के राज्य की प्राप्ति और पिता सिन्धसेन की शरणागति वज्रनाभि चक्री, सिन्धुसेन, प्रियमित्र, वज्रकुण्डल आदि का सुजमसूरि से उपदेश श्रवणवज्रनाभि चर्की की दीक्षा और वज्रकृण्डल का राज्यारोहण-- वज्रकुण्डल राजा का अपने नगर लौट आना। पुत्र प्राप्ति के बाद वज्रकुण्डल की दीक्षा और समाधि पूर्वक मृत्यु ३०९३-३५८२ ३५९०-३८९८ ३८९९-४०४५ ४०४६-४९१३ ८९१४-४९८३ ४९९१-४९९७ ४९९९-५००२ ७. छठा भव ब्रह्मदेव लोक में उत्पत्ति ५२५९ ८. सप्तम भव श्री वर्मकुमार श्री वर्मकुमार का नगर वर्णन राजा नरपुंगव और रानी पुण्यश्री का वर्णन राणी का स्वप्न दर्शन, वज्रकुण्डल का ब्रह्मदेवलोक से च्युत होकर रानी के गर्भ में उत्पत्ति पुत्र जन्म, श्री वर्मकूमार नामकरण श्रीवर्मकुमार की बाल-क्रीड़ा श्रीवर्मकुमार का कला ग्रहण के लिए जयशर्म उपाध्याय के समीप पहुँचना। उपाध्याय के पास श्रीवर्म कुमार का कलाग्रहण श्रीवर्मकुमार को मिलने के लिए राजा, रानी और मंत्री का अध्यापक के आश्रम में पहुँचना । श्रीवर्म कुमार के छंद, अलंकार, समस्यापूर्ति, प्रश्नोंत्तर एवं वाक् चातुर्य से पंडित राजा,रानी ५२६०-५२७६ ५२७७-५२८२ ५२८३-५३०० ५३०१-५३१२ ५३१३-५३५२ ५४०८-५५३४ ५५३५-५५८४ ५५८५-५५६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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