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अस्तु जो कुछ भी हो मेरा ध्येय यही है कि मैं अपने भावायों की किर्ति को अब भी सब के ऊपर देखें | मुझे तो पूरी आशा है कि विद्वानों की इस ओर खास दृष्टि होने से इस में सफलता अवश्य होगी |
अन्त में मैं विज्ञान पाठकों से अनुरोध करता हूं कि इस ग्रन्थमाला के प्रथम पुष्प को अपनायेंगे और जो कुछ भी त्रुटियां हों उन्हें मुझ पर प्रकटित करने की कृपा करेंगे, जिससे आगे के प्रकाशन में मुझे सहायता मिले ।
इसके बाद मैं जैम-वैद्यक या जैन- ज्योतिष प्रन्थ के प्रकाशन के लिये अत्यन्त उत्सुक हूं और संभवतः प्रन्थमाला की दूसरी माला वैधक की रसमयी अथवा ज्योतिर्मयो मौकिक मनिका की पिरोयी हुई होगी ।
श्रीजिनवाणीका
एक विन्न सेवक
निर्मलकुमार जैन ।
मंत्री श्रीजैन सिद्धान्त भवन आरा ।