Book Title: Muni Ki Raksha Author(s): Moolchand Jain Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala View full book textPage 4
________________ एक दिन अकम्पनाचार्य नामक दिगम्बर मुनिराज अपने सात सौ मुनिशिष्टों सहित उज्जैन नगर के समीप, उपवन में पधारे। मुनिराज को राजा और मन्त्रियों के विषय में जानकारी थी, वे अवधिज्ञानी जो थे। उन्होंने शिष्यों को निर्देश दिया कि... यदि मन्त्रिगण यहां आवे तो सब चुप रहें, वार्ता न करें, ताकि धर्मसाधना में कुप्रसंग उपस्थित नहो पाने | सच भी है, मूख और मिथ्यात्वी के समक्ष मौन रहकर ही विसम्बाद बचाया जा सकता है। AMINKwaima उस VON महाराज श्रीबर्मा मुनि-संघ के दर्शन के लिए तैयार होने लगे। उनका उत्साह देरखकर मन्त्रियों को मन ही मन ईर्ष्या होआई, किन्तु कुछ कह नहीं सके, महाराज तधामहारानी का अनुसरण करते हये उनके पीछे 'पीघेचले गए। -vu NAGAR TI-LANELA राजदम्पत्ती ने श्रद्धासे मुनि-बन्दना की मुनियों ने मौन रहते हुए, उन्हें आशिष दिये।Page Navigation
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