Book Title: Muni Ki Raksha
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ - मुनि श्रुतसागर शिष्य,मुझे आभास होता है कि वे कठोर उपवन पहुँचे,उनसे | ह्रदय मन्त्री रात्रि में तुम्हें समाप्त करने आयेंगे, गुरूने रास्ते का अतः तुम्हें उसी स्थान पर चला जाना चाहिये समाचार पूच लिया जहा उनसे वार्तालाप हआ था। फिर बोले... इससे या तो उनका हृदयक्या होगा परिवर्तन होगा या उन्हें गुरुवर? अपने कियेका दण्ड मिलेगा। तुम्हें निमित्त बनना अवश्यम्भावी गुरुर्दन के वचन सुन मुनि श्रुतसागर जी पूर्व स्थल पर आकर रवड़े हो गये और कुछ ही क्षणों में आत्मसाधना में लीन हो गये। बदला लेने की भावना से, रात्रि में चारों मंत्रीतलजारें लिए उसी स्थान से निकले मुनिराज को खड़ा देख उन्हेनि एकसाथ तलनारें तान लीवेधीर-धीर मुनिराज की ओर बढे... मुनिराजके निकट पहुँचकर उन्होंने मुनिराज पर वार करना चाहा तो नगर देवताने उन्हें कील दिया, जिससे वेअपनेअपने स्थान पर तलवारताने हुए शिलावत खडे रह गये

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28