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अब रत्न महिदेव के पास प्रातःकाल-विचारोंनेपलटा खाटा रत्न के आते ही वह सोचने
धिक्कार है मुझे बड़ा भाई होता है पिता के समान | लगा...
उनकी हत्या करंदो दिन के जीवन में अपने मुंह पर अच्छा किया जो
कालिख पोतलू और वह भी इसपत्थर को पाने के भाई साहब ने रत्न मझे Boyदेटिया 1 न देते तो मैं
| लिए नहीं नहीं ऐसा कभी नहीं करूंगा रत्न मैं
उन्हें ही देदूंगा | मझे तो उनका Mउनके पास छोड थोडेही
प्यार चाहिए,प्रेम चाहिए,यह रत्न देता। यह कमाया भी तो
नहीं चाहिए।नहींचाहिए। मेरी मेहनत के कारण से ही।
हरगिज नही। वह तो बस बैठे बैठेहक्म ही चलाया करते थे। यहां वहां आने जाने का कामतो सब मैं ही करता था। परन्तु क्या लौटाना पड़ेगा इसे उनको।। और हाकितनेचतुर हैटो कहा है कि कुछ (दिन तुम रखलो। पर में लौटा ऊगा हरीगज नहीं। में उनका कामही तमाम कर दंगा फिर रत्न हमेशा रहेगा मेरे ही पास ।
और महिदेव चल दिया बड़े भाई के पास रत्न लोटाने
लो भाई साहन,राह रत्न तुम्ही रस्तो क्यों भैया
अपने पास तुम्ही रखो न इसे। तुमने रखा या मैंने
नहीं भाई रखा बात तो एक
साहन ,मैं इसे ही है भैया।
हरगिज अपने पास नहीं रखूगा) यह मुझे इन्सान से हैवान बनाने जा रहा है। नहीं.. नहीं... तुम्हीं रखो
इसे।
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ठीक कहते हो भैया यह धन चीज ही ऐसी है। भाई को भाई से भी हीन लेता है। प्टार दुश्मनी में
बदल जाता है।
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