Book Title: Muni Ki Raksha
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन चित्र कथा मुनि-रक्षा Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय महापुरुष संसार की अनमोल निधि होते हैं। वे अपने ज्ञान, आचरण एवं कार्यों द्वारा संसार को अमूल्य देन देकर जाते हैं। उनका जीवन मानव के लिए दीपस्तम्भ के समान होता है। एक प्रकाश-पुञ्ज घनघोर अन्धकार को नष्ट कर देता है। उसी प्रकार महापुरुषों का जीवन व उपदेश अंधकाराच्छन्न मानव जीवन को प्रकाश से आलोकित कर देता है। वह अज्ञान रूपी अन्धकार में भटकने वाले मानव को दिव्य प्रकाश देता है। मानव का क्या कर्त्तव्य है ? मानव-जीवन की सार्थकता किसमें है ? यह सब उस प्रकाश में हमें स्पष्ट दिखाई देता है। यह सब जैन चित्र कथा के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं। ब. धर्मचंद शास्त्री प्रकाशक : आचार्य धर्मश्रुत ग्रन्थ माला गोधा सदन, अलसीसर हाउस, संसारचंद रोड, जयपुर सम्पादक : धर्मचंद शास्त्री लेखक : डॉ. मूलचंद जी जैन, मुजफ्फरनगर चित्रकार : बने सिंह प्रकाशन वर्ष ३ १९९० अंक २० मूल्य ६/ जैन चित्र कथाओं के प्रकाशन के इस पावन पुनीत महायज्ञ में संस्था को सहयोग प्रदान करें। परम संरक्षक संरक्षक आजीवन १११११ ५००१ १५०१ प्राप्ति स्थान : श्री दि. जैन मन्दिर गुलाब बाटिका दिल्ली Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ IIIII/II 11111 11/1/ मुनि-रक्षा ।। रेखांकन: बनेसिंह 17 एक समय कीबात है। महामुनि विष्णुकुमार जी धरणीभूषण पर्वतमाला के उच्च शिखर पर शान्तचित्त से तपस्या कर रहे थे। उस काल में भारत के धर्म प्रधान नगर उज्जैन में महाराज श्रीबर्मा राज्य करते थे। वे जैनधर्म के अनुयायी थे, विश्वमैत्री और परोपकार की भावना के पोषक थे। उनके दरबार में चतुर किन्तु चालाक चार मन्त्री थे। उनके नाम क्रमश: बलिचन्द्र,वृहस्पतिकुमार, प्रहलादचन्द्र और नमुचिकुमार थे। ये चारों मन्त्री सत्यासत्य का भेद किये बिना ही अपनी स्वार्थसिद्धि हेतु तत्पर रहते थे।जो जन उन्हें जानते थे, वे उन्हें मिथ्यात्वी मानते थे। 123 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक दिन अकम्पनाचार्य नामक दिगम्बर मुनिराज अपने सात सौ मुनिशिष्टों सहित उज्जैन नगर के समीप, उपवन में पधारे। मुनिराज को राजा और मन्त्रियों के विषय में जानकारी थी, वे अवधिज्ञानी जो थे। उन्होंने शिष्यों को निर्देश दिया कि... यदि मन्त्रिगण यहां आवे तो सब चुप रहें, वार्ता न करें, ताकि धर्मसाधना में कुप्रसंग उपस्थित नहो पाने | सच भी है, मूख और मिथ्यात्वी के समक्ष मौन रहकर ही विसम्बाद बचाया जा सकता है। AMINKwaima उस VON महाराज श्रीबर्मा मुनि-संघ के दर्शन के लिए तैयार होने लगे। उनका उत्साह देरखकर मन्त्रियों को मन ही मन ईर्ष्या होआई, किन्तु कुछ कह नहीं सके, महाराज तधामहारानी का अनुसरण करते हये उनके पीछे 'पीघेचले गए। -vu NAGAR TI-LANELA राजदम्पत्ती ने श्रद्धासे मुनि-बन्दना की मुनियों ने मौन रहते हुए, उन्हें आशिष दिये। Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजभवन को लौटते हुए एक मन्त्रीने धृष्टतापूर्वक कहा... पृथ्वीनाथ। ये मुनि मौन अन्य मन्त्री भी उस मन्त्री के स्वर से स्वर मिलाते हुये बोलेधारण किये हैं.लगता है आपकी विद्वत्तासे चिन्तित हाँ नरेश? यदि ज्ञान होता तो ये अवश्य होकर मौन बन गये हैं ही आपसे या हमसे किसी विषय पर ताकि पोल नहीं रतुलने वार्ता करते। पाये। महाराज कोई उपयुक्त उत्तर देते इसके पूर्व ही एक अन्य मंत्री व्यंग से बोला... महाराज देरिवये एक साधुनगर की ओर से इसी तरफ आ रहा है, यह उनमें से एक है। लगता है अभीअभी भोजन किया है इसलिए इसका पेट बैल के पेट की तरह फूलपड़ा है। महाराज श्रीबर्मा चाहते तो चारों मन्त्रियों की रवाल खिचाकर भूस भरा सकते थे पर वे ऐसे अज्ञानियों को समाप्त करने की इच्छा नहीं ररवते थे, उन्हें झान-प्रकाश प्रदान करयोग्य धार्मिक बनाना चाहते थे, क्योंकि उनमें अंतरंग वात्सल्य भान सदा बना रहता था। मन्त्रियों की बात पर वेकुचकहे कि नगर से आते मुनि श्री भुतसागर जी उनके निकट आ पहुंचे। श्रुतसागर जी गुरु की निषेध-आज्ञा से पहिले ही चर्या को निकले थे अतः मौन धारण नहीं किये थे। चारों मन्त्रियों ने उनसे एक के बाद एक कई प्रश्न किये जिनके उत्तर सम्त युतसागर जी ने सहजता से दे दिए, परन्तु श्रुतसागरजी के पहले प्रश्न पर ही सभी मन्त्री बगलें झांकने लगे। तब मुनिराज - अपने प्रश्नका उत्तर समझाकर उपवन की ओर बढ़ गये। मंत्रिगण अपने को हारा हुआ अनुभव कर रहे थे। राजा श्रीबर्मा ने उन चापलूसों पर कोई दोषारोपण नहीं किया,मन ही मनक्षमाकर दिया Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - मुनि श्रुतसागर शिष्य,मुझे आभास होता है कि वे कठोर उपवन पहुँचे,उनसे | ह्रदय मन्त्री रात्रि में तुम्हें समाप्त करने आयेंगे, गुरूने रास्ते का अतः तुम्हें उसी स्थान पर चला जाना चाहिये समाचार पूच लिया जहा उनसे वार्तालाप हआ था। फिर बोले... इससे या तो उनका हृदयक्या होगा परिवर्तन होगा या उन्हें गुरुवर? अपने कियेका दण्ड मिलेगा। तुम्हें निमित्त बनना अवश्यम्भावी गुरुर्दन के वचन सुन मुनि श्रुतसागर जी पूर्व स्थल पर आकर रवड़े हो गये और कुछ ही क्षणों में आत्मसाधना में लीन हो गये। बदला लेने की भावना से, रात्रि में चारों मंत्रीतलजारें लिए उसी स्थान से निकले मुनिराज को खड़ा देख उन्हेनि एकसाथ तलनारें तान लीवेधीर-धीर मुनिराज की ओर बढे... मुनिराजके निकट पहुँचकर उन्होंने मुनिराज पर वार करना चाहा तो नगर देवताने उन्हें कील दिया, जिससे वेअपनेअपने स्थान पर तलवारताने हुए शिलावत खडे रह गये Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुबह महाराज श्रीवर्मा तक समाचार पहुँचातो वे निरीक्षण करने पहुंचे। MHALM.. उन्होंने मुनिराज से बार-बार क्षमा याचना की... मंत्रियों को दरबार में लाकर रखबर ली। पहले उनका मुण्डनकराया,फिर देश से निकाल दिया। कई माहों तक भटकने के पश्चात वे चारों हस्तिनापुर के राजा पद्म की शरण में पहुँचे पदम के पिता महापदम पहले से ही राज्य त्यागकर दिगम्बर मुनि हो गये थे,छोटे भाई विष्णुकुमार जी भी उनके साथ नहीं रह सके और वेभी दिगम्बर मुजि कान गये थे। फलत: राजा पदम अपने को अकला और दुर्बल अनुभूत करते थे। चारों मंत्रियों कीवाली सेवे प्रभावित हुये और उन्हें अपनेदरबा में मंत्रियों के विविधपद प्रदान कर दिये।। Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्त्री चालाक थे ही, अत: राजा पदम पर अपना विश्वासजमाने सबसे पहले पद्म के प्रबल शत्रु,कुम्भक नगर के नरेश श्री सिंहबल को अपने कल-बल-छल से बन्दी बनाया और हस्तिनापुर ले आये। महाराज पदम सरल स्वभावी थे। उन्होंने शत्रु राजा सिहबल को अपने निकट पाने के बाद भी उसे क्षमा करवात्सल्य भाव से विदा कर दिया. Ma और मंत्रियों को इनाम मांगने की घोषणा सुना दी। दूरदर्शी किन्तु दम्भी मन्त्रियों ने इनाम की बात को सहज निरूपित करते हुए कहा कि... जब कभी अवसर देरखेंगे तब वे अवश्य ही इनाम मागेंगे,आशा है तब नरेश अपना वचन पूर्ण करेंगे। Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुछ काल पश्चात चारों मन्त्रियों को पता चला कि जिस मुनिसंघको वे उज्जैन में छोड़ आयेथे वह यथाशीघ्र हस्तिनापुर पधार रहा है। इस समाचार से उनके भीतर बदला लेने की इच्छा बलवती हो पड़ी उन्हें मालूम था कि महाराज पदम जिन-शासन के अनुगामी है अत: उनके रहते मुनियोंसे बदला नहीं लिया जा सकता। चारों मन्त्री कृतघ्नता-पूर्वक विचार कर महाराज पदम के पास पहंचे और बोले... महाराज! हम आज अपना इनाम मांगने आये है। क्या चाहिये? महाराज,हमें सात दिन के लिए अपना पदभार और अधिकार महाराज पदम वचनबदथे अतः सोपदीजिये तथा आप शांतिपूर्वक सात दिनों तक रजवास में रहिये। उन्होंने ऐसा ही किया। मन्त्रियों ने अधिकार लेने के बाद योजनानुसार एक यज्ञशाला बनवाई। फिर मुनियों के उपवन में प्रवेशकरते ही तीवगन्धयुम्त धुम्रकिया। मुनियों पर सड़ी गली वस्तुएँवमांस के टुकड़े उघाले। संघ-प्रमुख मुनि अकम्पनाचार्य उपसर्ग की तथा-कथा समझ गये, सो उसके निवारण-पर्यन्त सभी मुनि आगमपरम्परा के अनुसार अन्न-जल का त्यागकर ध्यान लीन हो गये। VI Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्त्रियों ने घोषणा की कि कल पूर्णमासी है अतः सुबह यज्ञशाला में जो भी भिक्षक पहुँचें उन्हें मुंह- मांगा दान दिया जावे, फिर उपवन में ठहरे मुनियों को अग्निकुण्ड में होम दिया जावे। MAHILAIMURTI RATAITANTHIMILAIMSTRIma उन्होंने यह समाचार अपने गुरुविष्णुसूरि जी को सुनाया। विष्णुसूरिने अपने ज्ञान बल से बतलाया आकाश मंडल में श्रवण-नक्षत्र को कॉपताहा देवकर मिथिलापुरी के एक विद्वानक्षल्लक श्री प्राजिष्णु जी ने ज्योतिर्विद्या के बल से यह जान लिया किजरूर कहीं दिगम्बर मुनियों पर भारी संकट आया हुआ है। कि... मुनिवर अकम्पनाचार्य और उनके संघ पर भीषण उपसर्ग किये जा रहे है,यदि शीघ्र ही धरणीभूषण पर्वत पर पहुँचकर विक्रिया-ऋद्धि धारक महामुनि विष्णुकुमार जीको यह सन्देश नहीं दिया तो महान अनर्थ हो जायेगा। Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षुल्लक माजिष्णु ने विद्याधर पुष्पदन्त को सूचना दी। पुष्पदन्त विद्याबल से अल्पसमय में महामुनि विष्णुकुमार की शरण में उपस्थित हो गये और पूरी वार्ता कह सुनाई। तब महामुनि बोले... लेकिन मुझे तो ज्ञात नहीं। महामुने? अवलोकन कर देरव लें। विद्याधर, इस हेतु मैं क्या कर सकता हूँ नाथ आप तो विक्रियाऋद्धि के धारक विद्याधर के कहने से महामुनि ने अपना एक हाथ फैलाया तो वह सहस्त्रों योजन बढ़ कर मानुषोत्तर पर्वत तक जा पहुँचा। महामुनि को अपनी मृद्धि पर विश्वास हुआ, हाथ समेटा.. 214 LABE Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और विचार कर हस्तिनापुर जा पहुंचे। महामुनि को मंत्रीबलिचंद्र की योजनासमझते देर नहीं लगी। उन्होंने एक ठिगने (बौने) मिक्षक का रुपधारण किया और श्लोकों चाओं का उच्चारण करते हुये ब्रह्ममुहूर्त में बलि के समक्ष जा पहुँचे। बलिचंद्र भिक्षक से बोले... बस-बस,श्लोक-फिश्लोक रहने दो, तुम्हें जो चाहिये हो सो मांगों, मैं-पृथ्वीनरेश बलि-तुम्हारे भाग्य को चमका दूँगा। मागों। शाासागर बलि की दम्भोक्ति पर भिक्षुक मुस्काने लगा, फिर संयत स्वर में बोला. महाराज मुझे मात्र तीन पग भूदान देने की कृपा करें। भिक्षककी मांग पर नलि ठिलाठिलाकर हंस पड़ा, कहने लगा... भिक्षक तुम मांगने में भी अपने स्वरूप की तरह छोटे निकले, जाओ नापलो,दीतुम्हें तीन पग धरती। Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बलि को वचनों में फांस लेने के बाद, महामुनि भेषी-भिक्षुक ने अपने पगनदाये। वे इतने बड़े हो गये कि प्रथम पग में ही मेरुपर्वत नाप दिया, NITI maal ildi LUMu LITE Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय पग मानुषोत्तर पर्वत पर पड़ा फलतःदोपगों में समस्त मनुष्यलोक नप गया, तीसरे पग के लिए स्थान नहीं बचा। तब महामुनि विष्णुकुमारजी चिढ़ाते हुये बोले... राजा महोदय, बतलाइये तीसरा पग कहां ररवू । धरती पर तो स्थान ही नहीं बचा। MAP lusi Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बलिचन्द्र घबड़ा गया। तब तक महामुनि ने तीसरा पग बलि की पीठ पर रख दिया। बलि धराशायी हो गया। देव, मानव और दानव भयमीत हो गये। 'पृथ्वी कांपने लगी। चारों और से क्षमा करो नाथ" के स्वर सुनाई देने लगे। क्षमा करो नाथ। NO 1/1/ क्षमा करो नाथ ! 13 A क्षमा करो नाथ ! U.. Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घटना से मिथ्यात्वी और दम्भी मंत्रियों को धर्म का ज्ञान हो गया। क्षमा करो नाथ! क्षमा करें नाय। क्षमा करें नाथ! क्षमा करना! Mum Q वे सभी जैनधर्म में प्रवृत्त व दीक्षित हुये। 14 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महामुनि विष्णुकुमार ने आगमानुकूल प्रायश्चित्त लिया... और समय आने पर केवलज्ञान को प्राप्त कर मुक्त,सिद्ध हो गये। Layilure O) ( Weathent, AR/ MiN sad श्रावण सुदी पूर्णिमा का दिन,तभी से रक्षाबन्धन का दिन कहलाता है। इस दिन सात सौ मुनियोंकी रक्षा की गई थी, तथा उपसर्गढ़ानेवालेआताताइयोंको जिनधर्म परायण बनाया गया था। Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धन के पीछे आज सभी तो दौड़ रहे हैं। और इस दौड़ में एक दूसरे से आगे निकलने की फिक्र में हैं। और धन आये, और धन आये इसी उधेड़बुन में सुबह से शाम तक हम पागल से हुए जा रहे हैं। अव्वल तो धन इस तरह से आता ही नहीं, उल्टे गलत काम करने से, बेईमानी से, धोखे से. चोरी से धन आता ही नहीं । धन आता है पुण्य से। और पुण्य बनता है अच्छे कामो से और यदि मान भी लिया जाये कि धन आ जायेगा तो साथ में क्या लायेगा यह धन आकुलता, परेशानी हैवानियत । इन्सानियत नाम की कोई चीज नहीं रह जाती धनवान में। तो सोचो क्या रखा है इसमें । इसे पढ कर यदि अन्याय से, पाप से, धोखे से धन कमाने की इच्छा कम हो गई तो और कुछ मिले न मिले परन्तु मनुष्यता अवश्य मिलेगी । क्या रखा है इसमें ? 'रेखांकन: बने सिह दो भाई थे. बड़ा था अहिदेव और छोटे का नाम था महिदेव एक थी उनकी छोटी बहिन और थी उनकी मां । बस यह था परिवार बहुत गरीब थे बेचारे-दो समय भोजन भी कठिनता से मिलता था। परन्तु आपस में था अटूट प्रेम । एक दिन... Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता जी। इस तरह कैसे कामचलेगा | अब बेटा,तुमबाहर जा रहे हो। दुख तो मुझे बहुत है हम बड़े होगये हैं। हम चाहते हैं कि कुछ धन परन्तु यह गरीबीका जीवन भी तो अब जिया पैदा करें। यहां से एक सेठ जी व्यापार के । नहीं जाता। जाओ मेरे प्यारे बच्चों, मेरा आशीर्वाद लिए विदेश जा रहे हैं। वह हमें... हमेशा तुम्हारे साथ है। ALLA ..वह हमें साथलेजाने के लिए तैयार है। आपकी आज्ञा हो तो हम भी उनके साथ... जहाज में दोनों बैठ गये सेठ जी भी है और पूरा साजसमान दोनों दूर से अपनी माको देख रहे है और देख रहे है जन्मभूमिको छोड़ते हुए बहुत दुत्व हो रहा है। आंसू निकल पड़ते हैं अखिों से.. KACSCG HE Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विदेश पहुंचकर भैया। हमने सूब नौकरी से जो | धन कमा लिया है। घनमिला उससे| अब हमें अपने देश अपनाव्यापार लौट चलनाचाहिए। किया खूनधन बहुत याद आती कमाया माला है मां की। माल होगये वे एक दिन... भाई साहब मैं तो आपसे स्वयं ही कहने वाला था स्वप्न में रोज मां दिखती है। wweiwww LOOTION MILAMVIDIO HTTPL तो बस अन हम्मीघ्र ही अपने देश को लौट चलेंगे। हां मैने सोचा है कि जो धन हमारे पास है उसका एक रत्न खरीद लें। लेजाने में बड़ी सहलियत रहेगी। ठीक विचारा आपने भाईसाहब HTraptoladan Nagamay TA Anil ALIGUPTAmitute HIMALAYAhmalmalayati Ghisimmitisummmunother POHTAMINISTRanbar Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्न खरीद लिया गया। रत्न लेकर चल दिये अपने देशको। रत्न था अहिदेव के पास । रात्रि हुई और ... ... रत्न बड़ा सुन्दर है और कीमती भी। परन्तु दुख की बात यह है कि यह साझे की चीज है। छोटे भाई का भी हिस्सा इसमें है। परन्तु यह ऐसी चीज नहीं कि उसे भीदीजाये। फिर...... फिर क्या उसको धक्का समुद्र में और बस रत्न मेरा और मेरा... Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारी रात इसी उधेड़-बुन में रहा। नींद नहीं आई। प्रातः हुआ और .. (manzi LL भैया, लो यह रत्न तुम लो। मैंने इसे अपने पास बहुत दिन रख लिया-अब तुम रखो इसे अपने पास कुछ दिन "dep नहीं नहीं भैया । मैं नहीं रखूंगा । लो यह तुम रखो रात को जो मैने सोचा था। कितना गलत था। छोटे भाई की हत्या उफ धिक्कार है मुझे। कितना प्यारा भाई है मेरा । ऐसे प्यारे भाई की जान के लूं और वह भी इस पत्थर के टुकड़े के लिए। नहीं नहीं, ऐसा हरगिज नहीं करूंगा। चलू रत्न उसे सौंप दूँ ! July भाई साहब, आप ही रखो न इसे अपने पास अच्छा भाई साहब जैसी आप की इच्छा Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अब रत्न महिदेव के पास प्रातःकाल-विचारोंनेपलटा खाटा रत्न के आते ही वह सोचने धिक्कार है मुझे बड़ा भाई होता है पिता के समान | लगा... उनकी हत्या करंदो दिन के जीवन में अपने मुंह पर अच्छा किया जो कालिख पोतलू और वह भी इसपत्थर को पाने के भाई साहब ने रत्न मझे Boyदेटिया 1 न देते तो मैं | लिए नहीं नहीं ऐसा कभी नहीं करूंगा रत्न मैं उन्हें ही देदूंगा | मझे तो उनका Mउनके पास छोड थोडेही प्यार चाहिए,प्रेम चाहिए,यह रत्न देता। यह कमाया भी तो नहीं चाहिए।नहींचाहिए। मेरी मेहनत के कारण से ही। हरगिज नही। वह तो बस बैठे बैठेहक्म ही चलाया करते थे। यहां वहां आने जाने का कामतो सब मैं ही करता था। परन्तु क्या लौटाना पड़ेगा इसे उनको।। और हाकितनेचतुर हैटो कहा है कि कुछ (दिन तुम रखलो। पर में लौटा ऊगा हरीगज नहीं। में उनका कामही तमाम कर दंगा फिर रत्न हमेशा रहेगा मेरे ही पास । और महिदेव चल दिया बड़े भाई के पास रत्न लोटाने लो भाई साहन,राह रत्न तुम्ही रस्तो क्यों भैया अपने पास तुम्ही रखो न इसे। तुमने रखा या मैंने नहीं भाई रखा बात तो एक साहन ,मैं इसे ही है भैया। हरगिज अपने पास नहीं रखूगा) यह मुझे इन्सान से हैवान बनाने जा रहा है। नहीं.. नहीं... तुम्हीं रखो इसे। NAL ठीक कहते हो भैया यह धन चीज ही ऐसी है। भाई को भाई से भी हीन लेता है। प्टार दुश्मनी में बदल जाता है। Boun Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपने देश कोलौट कर पहला काम जो उन दोनों ने किया वह था 'रत्न मां को सौंप दिया लो मां यह रत्न । हमारी विदेश की कमाई है यह। आप रखें इसे मेरे प्यारे बच्चों। में आज कितनी खुश हूं। तुम कितने लायक हो। कितने प्यारे,कितने अच्छे अब रत्न मा की मुट्ठी मे और म्या असर हुआ मां पर कितना सुन्दर है यह रत्न । अहा। अहाहा। आज मैं धन्य हो गई। बडी बन गई अन मैं धनवान हो गई। अबमुझे सब जगह इज्जत मिलेगी, सम्मान मिलेगा। परन्तु हां। मेरे बेटों ने यह मुझे देतो दिया है परन्तु माग भी तो सकते है वापिस । परन्तुस्टा यह लौटाने लायक चीज है। है तो नहीं परन्तु मांगने पर देनी लो पडेगी ही। हां, यह झंझट ररलाही क्यों जाये आजही दोनों को निपटा क्यों नवं शाम को ही भोजन में जहर मिला दूगी । बस रास्ता साफ फिर रत्न मेरा और मेरा । भी... सोचही रहीथी कि कितने प्यारेसे सलोने से बच्चे है मेरे। क्या सामने से आगये दोनों सोच रही थी मै इनके बारे में। इनको मार डालू। बेटे अहिदेव व महिदेत. जिनको अपने पेट से पैदा किया पाला पोसा,खिलाया बस विचारों ने पलटा । पिलाया, खुद गीले में सोई इन्हें सूखेमें सुलाया । रवाया और..... मारटू इन्हें । धिक्कार है मुझे। इनकी हत्या कर इस पत्थर के लिए। और मैं. जिसको आज मरे कल दूसरा दिन होना है- जहर देहूँ । धिक्कार है मुझे । EDGUR.C Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्या बात है? माँ क्यो रो रही हो? कुद नहीं कुछ नहीं मेरे प्यारे बच्चों | मेरी आंखों के तारों बेटा । मझे नहीं चाहिए यह रत्न ! मुझे गरीबी मे ही रहने दो। इससे तो गरीबी ही अच्छी थी यह तो हमे इन्सान भी बने नहीं रहने देता । बेटा-मेराएक कहना मानो। इस पत्थर को जो हमें हैवान बनाये दे रहा है समुद्र में फेंक दो। 30 जैसी आज्ञा माता जी। समुद्र के किनारे खड़े है अहि देत. महिदेव उनकी बहन और उनकी माँ-"रत्नसमुद्र में फेंक दिटा... मेरे प्यारे बच्चो | आज हम बहुत प्रसन्न है। यह बात कितनी बडी है कि आज हम मनुष्य तो है । जब तक यह रत्न हमार पास रहा। इसजे हमें हैवान बनाये रखा। हम अपनी इसी गरीबी में खुश है। अगर दुनिया में गरीबी नहीं होती तो शायद मनुष्यता मरही गई होती। क्या रखा है इस धन में ? Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (8 वर्ष से 80 वर्ष से बालकों के लिए) जैन चित्र कथा के सदस्य बनिये वार्षिक पंच वर्षीय दस वर्षीय आजीवन विशिष्ट सदस्य संरक्षक परम संरक्षक 351 रु. 1,000 रु. 1,500 रु. 2,501 रु. 5,001 रु. 11,111 रु. विज्ञापन शुल्क अन्तिम पृष्ठ 5,000 रु. मुखपृष्ठ के पीछे 3,000 रु. पृष्ठ नं.3 पर 2,500 रु. सामान्य पृष्ठ 1,000 रु. ड्राफ्ट जैन चित्र कथा के नाम से भेजें जैन चित्र एजेन्सी के लिए सम्पर्क करें दिल्ली कार्यालय:जैन मन्दिर, गुलाब वाटिका दिल्ली सहारनपुर रोड़ लोनी बॉर्डर के समीप दिल्ली जयपुर कार्यालय : गोधा सदन अलसीसर हाउस संसार चन्द्र रोड़ जयपुर Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिल्ली जैन संघ, बम्बई जैन संस्कृति की रक्षा एवं भाषी संगठन के लिए दिल्ली जैन संघ के सदस्य बने तथा अपना सहयोग प्रदान करें । संस्था के उद्देश्य संस्था के उद्देश्य 1. दिल्ली एवम् उसके आस पास के इलाके से आये हुये जैन भाईयों एवम् उनके परिवारों को एक जूट करना 2. मानव सेवा ही ईश्वर का दूसरा रूप है इसे ध्यान में रख कर जरूरत मन्दों की मदद करना 3. असहायों की यथा सम्भव सहायता करना इस उद्देश्य के साथ-साथ और भी सेवा कार्य के उद्देश्य संस्था के उद्देश्य हैं। पता : 7/9 मंगलदास मारकेट, बिल्डिंग नं. 2, चोथा माला, बम्बई नं.- 4000002 २५४३०१ **-4834834483-183 For Your Requirements of 834838383838383183183883 ALL KINDS OF BOOKS ON MEDICAL TECHNICAL GENERAL EDUCATIONAL TEXT BOOKS RING, Write or Visit : M/s College Book Store Publishers 1701-2, Nai Sarak, Delhi-110006 88348348343434183 Phone 3279128 Wholesellers Importers 1833 18388•• 183-83-83-13 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अरेराहुल,क्यों लड़ रहे हो? | तमलोग लडाईक क्यों लाते हो? राहुल और दीपू लड़ाई का घर मम्मी ! दीपूने मेरी मम्मी। मुझे लो मेरे दोस्त ने कॉमिक्स हीनली वापिस करदो उसे लड़ाई मिट जायेगी पापा का प्रवेश लो बेटे। यह जैन कॉमिक्स जिससे कुछ "ज्ञान हो। पापा मम्मी तो नहीं बेटा! जैन / कहती है कि कामिक्स पढने से कॉमिक्स लड़ाई लडाई मिटती का घर है। नहीं, पहले मैं उसे पूरी पदूंगा। पाया! कॉमिक्स पढने सेलड़ाई कैसे मिटती बेटा! जैनधर्म लड़ना नहीं प्रेम करना सिस्वाता तब तो हम जैन कॉमिक्स है। इसका जैन कामिक्स रोज पढ़ेंगे पापा जी / मैं वर्णन है। सरल शिक्षा का एक विचार, जैन कॉमिक्स का हो प्रचार