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द्वितीय पग मानुषोत्तर पर्वत पर पड़ा फलतःदोपगों में समस्त मनुष्यलोक नप गया, तीसरे पग के लिए स्थान नहीं बचा। तब महामुनि विष्णुकुमारजी चिढ़ाते हुये बोले...
राजा महोदय, बतलाइये तीसरा पग कहां ररवू । धरती पर तो स्थान ही नहीं बचा।
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