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सारी रात इसी उधेड़-बुन में रहा। नींद नहीं आई। प्रातः हुआ और ..
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भैया, लो यह रत्न तुम लो। मैंने इसे अपने पास बहुत दिन रख लिया-अब तुम रखो इसे अपने पास कुछ दिन
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नहीं नहीं भैया । मैं नहीं रखूंगा । लो यह तुम रखो
रात को जो मैने सोचा था। कितना गलत था। छोटे भाई की हत्या उफ धिक्कार है मुझे। कितना प्यारा भाई है मेरा । ऐसे प्यारे भाई की जान के लूं और वह भी इस पत्थर के टुकड़े के लिए। नहीं नहीं, ऐसा हरगिज नहीं करूंगा। चलू रत्न उसे सौंप दूँ !
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भाई साहब, आप ही रखो न इसे अपने पास
अच्छा भाई साहब जैसी
आप की इच्छा