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उत्तर : दोनों ही प्रकार की स्थितियाँ सम्भव हैं। अधिकां तिः
तो जीव को 'कार्यानुकूल' निमित्त को खोजना पड़ता है, और कभी-कभी ऐसे निमित्त का संयोग अनायास भी हो जाता है। परन्तु हमें मोक्षमार्ग के अनुकूल निमित्तों को जुटाने का - अर्थात् उनका संयोग प्राप्त करने का - प्रयत्न करना चाहिये, उनकी “स्वयमेव उपस्थिति' की प्रतीक्षा में बैठे नहीं रहना चाहिये।
प्र न ४ : निमित्त को जुटाने से क्या होगा, कार्य तो जब
होना है तभी होगा? उत्तर : पण्डितप्रवर टोडरमलजी ने मोक्षमार्गप्रका ाक में लिखा
है कि बुद्धिपूर्वक जुटाए जाने योग्य निमित्त तो चेश्टा करके ही जुटाए जाते हैं, और अबुद्धिपूर्वक जुटने लायक निमित्त (कर्मोदय आदि के अनुसार) अपने आप आकर जुट जाएँ,
संयोग को प्राप्त हो जाएँ, तो कार्य सम्पन्न होता है। प्र न ५: यह कहने में क्या आपत्ति है कि निमित्त के बिना
कार्य नहीं होता? उत्तर : "निमित्त के बिना कार्य नहीं होता' – यह कथन ठीक
है, परन्तु उपादान ही निमित्तत्वरूपी योग्यता रखने वाले किसी पदार्थ को निज कार्य के लिये निमित्त बनाता है। अतः वस्तुस्थिति का एक पक्ष यह भी है कि योग्य निमित्त के उपस्थित होने पर भी, उसका संयोग प्राप्त कर लेने पर भी, जब तक जीवरूपी उपादान विवक्षित कार्य के अनुरूप तैयार नहीं होता तब तक कार्य नहीं होता। जैसे - 'मुनिव्रत धारण किये बिना मोक्ष प्राप्त नहीं होता', यह बात ठीक है; परन्तु, मुनिव्रत धारण करके, जीव/उपादान को मोक्षप्राप्ति के पुरुशार्थ में निरन्तर तत्पर रहना चाहिये।