Book Title: Mokshmarg ke Sandarbh me Nimitta ka Swarup
Author(s): Babulal
Publisher: Babulal

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ 'बाह्य वस्तु के त्याग मात्र से विकल्प टूट जाएं' ऐसा नहीं है, परन्तु विकल्पों को तोड़ने के लिये बाह्य वस्तु का त्याग आव यक है; और हम सभी जानते हैं कि विकल्पों का अभाव ही भावसंयम है। अतः द्रव्यसंयम से यद्यपि भावसंयम नहीं होता, तथापि भावसंयम के लिये द्रव्यसंयम का होना आव यक है, अपरिहार्य है द्रव्यसंयम को भावसंयम का 'साधन' तो अव य बना सकते हैं, किन्तु वह 'कारण' नहीं होता है। प्र न २० : गाली देने वाले व्यक्ति ने क्या क्रोध नहीं कराया? उत्तर : नहीं, हमारी अज्ञानमूलक मान्यता ही ऐसी हो रही है कि 'यदि कोई गाली दे तो क्रोध करना चाहिये।' यही कारण है कि ऐसा संयोग जुड़ते ही, अपनी पूर्वनिर्मित धारणा के वीभूत हुए हम बिना कुछ सोचे-समझे क्रोधित हो जाते हैं, और सोचते यह हैं कि 'उसने क्रोध करा दिया।' निमित्त पर कर्तापने का मिथ्या आरोपण करने वाली, उस पर अपने रागद्वेशरूप परिणमन का दायित्व थोपने वाली इस दृश्टि को ही निमित्ताधीन दृश्टि कहा जाता है। यदि देखा जाए कि गाली देने वाले ने क्या किया, तो वस्तुतः उसने तो केवल अपना परिणमन किया। हमने ही अपने ज्ञानस्वभाव से हटकर उसे सुनने में अपना उपयोग लगाया, और सुनकर उसमें अनिश्टता की कल्पना की । हमारा क्रोधमय परिणमन हमारी उसी अनिश्टतारूपी कल्पना का फल है। यदि हम गाली को न सुनते, अथवा उसे अनसुनी कर देते, या फिर उसमें अनिश्टत्व की कल्पना नहीं करते, तो हमारा क्रोधरूप परिणमन नहीं होता ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35