Book Title: Mokshmarg ke Sandarbh me Nimitta ka Swarup Author(s): Babulal Publisher: Babulal View full book textPage 1
________________ मोक्षमार्ग के सन्दर्भ में निमित्त का स्वरूप $ २.१७ द्रव्यकर्म और चेतन - परिणामों के बीच होने वाला दोतरफा निमित्त - नैमित्तिक सम्बन्ध जीवप्रदेशों के साथ एक क्षेत्रावगाह को प्राप्त हुई कार्मण वर्गणाएँ, जीव के परिणामों के निमित्त से ज्ञानावरणादि कर्मरूप परिणमित हुआ करती हैं। जीवप्रदेशों के साथ बँधते हुए इन आठ कर्मों में, स्थिति और अनुभाग की हीनाधिकता भी जीव के विकारी परिणामों के अनुसार ही होती है परिणामों में जितना कषाय-अंश होता है, उसी अनुपात में कर्मों में स्थिति - अनुभागांश पड़ते हैं । यह निमित्त–नैमित्तिक सम्बन्ध इकतरफा नहीं, बल्कि दोनों तरफ़ से है। जहाँ, एक तरफ, जीव के कषायादिभावरूप निमित्त के सदभाव में कार्मण वर्गणाएँ अष्टकर्मरूप (नैमित्तिकरूप) परिणमन करती हैं; वहीं, दूसरी तरफ, पूर्वबद्ध कर्म के उदयरूप निमित्त के सद्भाव में जीव रागादिकरूप (नैमित्तिकरूप) परिणमन करता है। परन्तु अपनी भ्रमपूर्ण धारणा के कारण, इस दूसरी तरफ के निमित्त - नैमित्तिक सम्बन्ध को हमने कर्ता-कर्म सम्बन्ध मान रखा है, और अपनी स्वतंत्रता को भुलाकर स्वयं को कर्मों के आधीन बना रखा है। वस्तुतः यह जीव अपनी शक्ति को भूल गया है कि 'मैं चेतनायुक्त पदार्थ हूँ मुझमें आत्मशक्ति है।' इसकी जितनी आत्मशक्ति वर्तमान में है, उसे यह अपनी इच्छानुसार प्रयोग कर सकता है; इसलिये उतने - -Page Navigation
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