Book Title: Mokshmarg ke Sandarbh me Nimitta ka Swarup
Author(s): Babulal
Publisher: Babulal

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Page 35
________________ "निमित्त ने मुझे अपने आधीन कर रखा है' - यह "मिथ्या' दृश्टि है। मैं निमित्त के या पर के आधीन हो रहा हूँ' - यह चारित्रमोह है। और, 'मैं अपने में हूँ' - यह मोक्षमार्ग है। 'निमित्त ने मेरा इश्ट-अनिश्ट किया' - यह मिथ्यात्व है। मैंने पर का अवलम्ब लेकर अपना हित-अहित किया' - यह चारित्रमोह है। और, 'मैं अपने आप में स्थिर हो गया हूँ' यह मोक्षमार्ग है, तथा इसकी निर्विकल्प पूर्णता ही मोक्ष है।

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