Book Title: Mokshmarg ke Sandarbh me Nimitta ka Swarup
Author(s): Babulal
Publisher: Babulal

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Page 34
________________ कथन है वह निमित्त की अपेक्षा को लिये हुए है; और निमित्त की मुख्यता वाला जो कथन है वह उपादान की अपेक्षा रखता है। प्र न २५ : जीवन में उपादान की मुख्यता लेकर चलें या निमित्त की ? उत्तर : मोक्षमार्ग में उपादान की मुख्यता होती है, अतः उसी की मुख्यता को लेकर चलना चाहिये। हाँ, संसार में अव य निमित्त की मुख्यता हुआ करती है 'निमित्त' से यहाँ तात्पर्य द्रव्यकर्मों से है, और उनमें भी मुख्यरूप से चार अघातियाकर्मों से, जिनके उदय के अनुसार जीवन में विभिन्न प्रकार की अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थितियाँ अर्थात् सुख - दुःख की बाह्य सामग्री, इश्ट - अनिश्ट संयोग-वियोग आदि उपस्थित होती हैं । इस दृश्टि से जब हम देखते हैं तो पाते हैं कि जीवन का समस्त लौकिक कार्य कर्मों ने भली-भाँति सँभाल रखा है और हमारे करने के लिये कुछ भी नहीं है सिवाय इसके कि हम बाह्य पदार्थों/परिस्थितियों में कर्तृत्व का राग छोड़कर ज्ञाता-द्रश्टारूप रहें । ― पुन च निश्कर्श यह कि मोक्षमार्ग के सन्दर्भ में, आत्म-कल्याण के निमित्तों का अवलम्बन लेकर हमें अपने परिणामों को सरल करना चाहिये । रागादिक के निमित्तों से दूर I रहकर स्वयं को कशायरूप परिणमन से बचाना चाहिये, तथा आत्महित के निमित्तों के अवलम्बपूर्वक आत्मबल बढ़ाने का पुरुशार्थ करना चाहिये। जैसे-जैसे आत्मबल बढ़ता जाएगा, वैसे-वैसे निमित्तों का अवलम्ब लेने की आव यकता भी कम होती जाएगी।

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