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अतः गाली ने वास्तव में क्रोध नहीं कराया, बल्कि उसका अवलम्ब लेकर हमने स्वयं क्रोध किया यही सम्यक् वस्तुस्थिति है। इस सत्य को स्वीकार करने से गाली देने वाले में हमारी द्वेशबुद्धि नहीं होगी, प्रत्युत हम उदासीन या भाान्त रहने का पुरुशार्थ करेंगे यही हमारा सम्यक् पुरुशार्थ होगा। इसके विपरीत, यदि हम निमित्त को दोशी मानेंगे तो उससे द्वेश अव य करेंगे; और अपनी इस मान्यता के फलस्वरूप उसे ठीक करने की अनधिकार व निश्फल चेश्टा करेंगे ।
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प्र न २१ : क्या 'निमित्त' हमें सुखी - दुःखी कर सकता है ? उत्तर : नहीं, हमारा दुःख-सुख हमारे अपने कशायमय अथवा निश्कशाय परिणमन से होता है, निमित्त के कारण नहीं । अपने में आत्मबल की कमी के कारण, चूँकि हम निमित्त से अप्रभावित नहीं रह पाते और उसका अवलम्ब लेकर कशायरूप परिणम जाते हैं, इसलिये हमें यह भ्रम हो जाता है कि निमित्त ने हमें दुःखी - सुखी किया। उससे प्रभावित होना या न होना वस्तुतः हमारे अपने ऊपर निर्भर है।
प्र न २२ : क्या 'निमित्त' हमारा लौकिक हित-अहित कर सकता है?
उत्तर : नहीं, परपदार्थरूपी निमित्त तो मात्र एक माध्यम है; असल में तो हमारे पुण्य-पापकर्म का उदय ही लौकिक हित-अहित में निमित्त होता है।
प्र न २३ : यह क्यों कहा गया है कि 'परावलम्बन से स्वावलम्बन नहीं होगा,
बल्कि स्वावलम्बन से ही स्वावलम्बन होगा' ?
उत्तर : प्राथमिक अवस्था में परावलम्बन से ही स्वावलम्बन की भावना जाग्रत की जाती है आगे चलकर, इस प्रकार
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