Book Title: Mokshmarg ke Sandarbh me Nimitta ka Swarup
Author(s): Babulal
Publisher: Babulal

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Page 33
________________ जाग्रत की गई वह स्वावलम्बन की भावना पुनः अधिक स्वावलम्बन को बढ़ाने के लिये प्रेरित करती है। जैसे कि प्राथमिक अवस्था में भास्त्र अध्ययन से आत्मभावना जाग्रत ही जाती है, और आगे चलकर वही आत्मभावना आत्मानुभवन के लिये प्रेरित करती है। जो लोग आगम के अध्ययन का अवलम्ब लिये बिना कोरी आत्मभावना की बात करते हैं, उन्हें तो आगम का अवलम्बन लेने का उपदे । दिया गया है; और जो लोग सिर्फ भाास्त्र अध्ययन में ही लगे हुए थे, उन्हें 'स्वावलम्बन से ही स्वावलम्बन होगा' - ऐसा उपदे । दिया है। प्र न २४ : चावल है वह अग्नि और जल का निमित्त मिलने पर पकेगा या स्वयं अपने उपादान की योग्यता से पकेगा? उत्तर : कोई भी कार्य स्व–पर या उपादान-निमित्त, दोनों की अपेक्षापूर्वक होता है, अतः जहाँ भी कार्य होगा वहाँ निमित्त और उपादान, दोनों ही होंगे। अग्नि व जल के बिना चावल पक जाएं, यह सम्भव नहीं है; तथा, दूसरी ओर, चावल में पकने की सामर्थ्य न हो और अग्नि व जल उसे पका दें - ऐसा भी नहीं है। जब उपादान की मुख्यता से कथन करते हैं कि 'चावल अपनी भाक्ति से पका, निमित्त ने क्या किया', तब उसका अभिप्राय है कि जो निमित्त है वह उपादान की आभ्यन्तर भाक्ति का कर्ता नहीं हो सकता। दूसरी ओर, जब निमित्त की मुख्यता से कथन करते हैं तो कहते हैं कि विवक्षित कार्य निमित्त के बिना नहीं हुआ। कार्य तो वस्तुतः निमित्त और उपादान, दोनों की समग्रता में ही होता है - यही कथन प्रमाणभूत है। उपादान की मुख्यता वाला जो

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