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जिसका अवलम्ब लेने पर हमारा कार्य विपरीत हो जाता है, उसे 'अनिश्ट निमित्त' कहते हैं ।
प्र न ११ : जब निमित्त राग-द्वेश नहीं करा सकता, तब उससे बचने का
उपदे क्यों दिया गया है?
उत्तर : पर-पदार्थ हमारे राग-द्वेश का कर्ता नहीं हो सकता यह बात ठीक है, परन्तु पर - पदार्थ के संयोग के सद्भाव में चूँकि आत्मबल के अभाव के कारण हम उसका अवलम्ब लेकर राग-द्वेश कर लेते हैं, अतः ऐसे पर-पदार्थों से बचना आव यक है; परद्रव्य को अनिश्ट मानकर नहीं, अपितु अपने में आत्मबल का अभाव मानकर बचना आव यक है (क्योंकि उसके सद्भाव में हम अपने परिणामों पर नियन्त्रण नहीं रख पाते) । इसी प्रकार, हम
भनिमित्तों का संयोग प्राप्त करने की चेश्टा करते हैं
इसलिये नहीं कि वह हमारा कल्याण कर देगा, बल्कि इसलिये कि उसका अवलम्ब लेकर यदि हम अपने परिणामों को सुधार कर अपना कल्याण करना चाहें तो कर सकते हैं।
प्र न १२ : आत्मा तो परद्रव्य के ग्रहण - त्याग से रहित है, फिर निमित्त को
जुटाने या हटाने का प्र न ही कहाँ उत्पन्न होता है? उत्तर : यह बात ठीक है कि द्रव्यदृश्टि की अपेक्षा यह आत्मा परद्रव्य का ग्रहण अथवा त्याग नहीं कर सकता। परन्तु निमित्त को जुटाना या हटाना तो पर्यायदृश्टि का विशय है, अतः द्रव्यदृश्टि की अपेक्षा इस बात पर विचार करना असंगत होगा। पर्यायदृष्टि से हम परद्रव्य का