Book Title: Mokshmarg ke Sandarbh me Nimitta ka Swarup
Author(s): Babulal
Publisher: Babulal

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Page 28
________________ प्र न १६ : निमित्त - नैमित्तिक सम्बन्ध और कर्ता-कर्म सम्बन्ध में क्या अन्तर है? उत्तर : (1) कर्ता-कर्म सम्बन्ध सदैव एक ही द्रव्य में होता है, जबकि निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध सदैव दो द्रव्यों की पर्यायों में होता है। (2) निमित्त - नैमित्तिक सम्बन्ध के सन्दर्भ में, कार्य-अनुकूल निमित्त के साथ-साथ उपादान का भी तदनुरूप परिणमन ाक्ति से युक्त होना आव यक है तभी कार्य निश्पन्न हो सकता है, अन्यथा नहीं । प्र न १७ : समयसार में जीव को अपने 'ज्ञान - द नि का कर्ता बतलाया है । उसमें 'यः परिणमति 7 वाली परिभाशा कैसे घटित होगी? उत्तर : समयसार में कर्ता-कर्म सम्बन्ध का कथन दो भिन्न-भिन्न दृश्टियों से किया गया है द्रव्यदृश्टि से, और पर्यायदृश्टि से । द्रव्यदृश्टि से यह जीव अपने ज्ञान-दन स्वभाव का कर्ता है; अपने ज्ञान - दनि गुणों के साथ इसका नित्य - तादात्म्य है। दूसरी ओर, पर्यायदृश्टि से यह जीव अपने परिणामों का कर्ता है; अपने परिणामों के साथ इसका अनित्य-तादात्म्य है। नित्यतादात्म्य/ अभेद को प्राप्त द्रव्य और उसके गुणों के बीच भेददृष्टि की मुख्यता से, नित्यतादात्म्य में कर्ता-कर्म सम्बन्धरूपी भेदात्मक उपचार करते हुए, आचार्यों ने द्रव्यदृश्टिविशयक कर्ता-कर्म सम्बन्ध का कथन जहाँ किया है, वहाँ उनका प्रयोजन जीव निज विकारी पर्यायों में एकान्त-कर्तृत्वबुद्धि को छुड़ाने का रहा है ('तू तो मात्र अपने ज्ञान–द नि का कर्ता है, रागादिक का नहीं' इस ―

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