Book Title: Mokshmarg ke Sandarbh me Nimitta ka Swarup
Author(s): Babulal
Publisher: Babulal

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Page 22
________________ || निमित्तविशयक भांका-समाधान ।। प्र न १ : ऊपर, लेख में कहा गया है कि निमित्त किसी कार्य का कर्ता नहीं होता, और वह कार्य को कराता भी नहीं - तो फिर कार्य के होने में निमित्त की क्या कोई भी अपेक्षा है, या कि वह सर्वथा अकिंचित्कर है? उत्तर : मोक्षमार्ग के सन्दर्भ में, विवक्षित कार्य के होने में निमित्त सहायता या मदद नहीं करता, इस दृश्टि से यद्यपि अकिंचित्कर है; तथापि उपादान उसकी (निमित्त की) सहायता लेता है, इसलिये उसकी अपेक्षा भी है। प्र न २ : 'जब कार्य होगा तो निमित्त वहाँ पर अव य उपस्थित होगा' - क्या यह कहना ठीक है? उत्तर : हाँ, यह बात ठीक है कि जब कार्य होता है तो निमित्त वहाँ पर होता ही है – परन्तु यह तो ठीक जिस क्षण कार्य हो रहा होता है, बिल्कुल उसी क्षण की वस्तुस्थिति का कथन है। कार्य होने से पहले तो जिस जीव को अपना वांछित कार्य करना है, वह उस कार्य के अनुकूल निमित्त को जुटाने के लिये प्रयत्न अव य करता है। फलस्वरूप, जब कार्य होता है तब निमित्त-उपादान दोनों ही मौजूद होते हैं और उपादान/जीवद्रव्य निमित्त का आश्रय लेता है। अपनी उपस्थिति मात्र से कोई पदार्थ 'निमित्त' नहीं कहलाता, प्रत्युत उसका आश्रय या अवलम्ब लेना होता है। प्र न ३ : निमित्त को खोजना पड़ता है या वह स्वयमेव उपस्थित हो जाता है?

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