Book Title: Mohan Charitam
Author(s): Damodar Sharma
Publisher: Damodar Sharma
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मो०
॥४॥
सोऽचिन्तयच्च यदहो मदामोदविजृम्नितम् ॥ विचक्रे नोगसौस्थ्ये-स०६ ऽपि यशझीष्वधमं मनः ॥ १३३ ॥ शिरश्छेदोऽत्र नरको-ऽमुत्र । स्यात्पारदार्यतः॥अकीर्तिश्च यथादल्या-संगतः स्वःपतेरपि॥१३॥ स हि धन्यतमो लोके यः सदा दूरतो वसेत् ॥ नुजङ्गीन्य श्वैतान्यः कुटिलान्यः परित्रसन् ॥ १३५॥ एवमालोच्य सुमति-स्ततो राजपरिग्रहे ॥ निर्विकारमनाः सोऽनू-त्परनारीसहोदरः॥१३६॥ कौतु-y केनैकदा सोऽगा-सनिकानां निवेशने ॥ तत्राहतो न केनापि प्रत्युतायं तिरस्कृतः॥१३॥ गालिप्रदानं कलहं बेदनं ताडनं तथा॥ कुर्वाणांस्तान्समालोक्य स तु गाढं व्यरज्यत ॥ १३७॥ विवेकान्मानसे चैवं व्यनावयदसौ कृती ॥ द्यूतं हि धुरि सर्वेषां व्यसनानामधि
॥
४॥
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