Book Title: Mohan Charitam
Author(s): Damodar Sharma
Publisher: Damodar Sharma

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Page 125
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मो० ॥६२॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | कोऽपि प्रभवे - तस्मादेषा प्रशस्यते ॥ ५९ ॥ यदि निर्वहणे शक्तिः | परिणामोऽपि सुस्थिरः ॥ तदिमां सर्वविरति - मुररीकुरु नमक ॥६०॥ | निशम्यैतत्सगुरूणां वचो निर्वेदगर्जितम् ॥ चारित्रग्रहणे गाढ - निश्चयोऽसौ तदाभवत् ॥ ६१ ॥ व्यजिङ्गपच्च मां दीनं समुहर्तुं नवार्णवात् ॥ चारित्रं तरणीकल्पं दयया दातुमर्हथ ॥ ६२ ॥ परिणामः परीक्ष्योऽस्य विचिन्त्येति मुनीश्वराः ॥ दनैश्चयिकं नैव तस्मै प्रतिवचस्तदा ॥ ६३ ॥ यथा वर्षात्यये मेघा - वरणं नाशमासदत् ॥ तथो|पदेशाव्यानां ज्ञानावरणमञ्जसा ॥ ६४ ॥ यथापूर्वमभूत्तत्र धर्मो - नतिरनुत्तमा । मनःप्रसत्तिश्च सर्व - नव्यानां गुरुलानतः ॥ ६५ ॥ चातुर्मास्येऽथ निर्वृत्त इतौ च विहतिमे ॥ सिइयेन्न वा ममाजीष्टं For Private and Personal Use Only स० ॥६२॥

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