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बूंद उठा कर मूछ पर लगाते हुए बादशाह को देख लिया था । बादशाह को भी यह मालम हो गया कि बीरबल ने मुझे देख लिया है। इससे वे बहुत शर्मिन्दा हुए।
अपनी शर्म को मिटाने के लिए उन्होंने खजांची से सारे देश में पत्र लिखवा कर सूचना करवा दी कि बादशाह इत्र के बहुत शौकिन हैं। जिन्हें भी इत्र बेचना हो, वे दिल्ली दरबार में अमुक दिन अपना माल लेकर हाजिर हो जायँ ।
खबर पाते ही दूर-दूर से इत्र-विक्रेता झुण्ड के झुण्ड दिल्ली दरबार में चले आये। खजांची ने मुह माँगे दाम से सारा इत्र खरीद लिया। फिर बादशाह ने स्नान करने का जो हौज था, उसका पानी बहार निकलवा कर सारा इत्र उसमें डलवा दिया हौज इसे पूरा भर गया।
फिर लँगोटी बाँधकर बादशाह उसमें तैरने लगे और बीरबल से बोले : "देखो तो इस इत्र में तैरने का मुझे कितना मजा आ रहा है ?"
बीरबल ने कहा : “जहाँपनाह ! गुस्ताखी मुआफ हो तो एक बात अर्ज करूं।"
बादशाह : “कहिये; आज तो मैं बहुत खुश हूँ। सब कुछ सुन सकता हूँ; क्योंकि इत्र में पहली बार तैरने का मजा ले रहा हूँ।"
बीरबल : “जहाँपनाह ! जो इज्जत बूंद से गई वह हौज़ से भी नहीं आ सकती। अर्थात् आपका जो गौरव बूदने नष्ट कर दिया वह अब हौज़ से भी पुनःप्राप्त नहीं हो सकता!"
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