Book Title: Mitti Me Savva bhue su
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 251
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३६ "समझ गया" कहकर घुड़सवार स्वयं घोड़े से नीचे उतरा और उन मज़दूरों की मदद की। फिर अफसर को सलाम करते हुए उसने कहा : "यदि फिर कभी इन मज़दूरों को मदद की आवश्यकता हो तो मुझे बुलवा लीजियेगा । मेरा नाम और पता है— जार्ज वाशिंगटन, राष्ट्रपति, अमेरिका !" यह सुनते ही अफसर के पैरों तले से की ज़मीन खिसकने लगी । तत्काल दौड़कर उसने जार्ज के पाँव पकड़ लिये । जार्ज ने इस शर्त पर उसे क्षमा प्रदान की कि भविष्य में वह कभी इस प्रकार मनुष्यता का अनादर नहीं करेगा । मानवजीवन परोपकार से ही सफल होता है । उसे केवल पशुपक्षियों के समान भोगों में बिता देने वाले कैसे मूर्ख हैं ? सो इस श्लोक में देखिये : । स्वर्णस्थाले क्षिपति स रजः पादशौचं विधत्ते पीयूषेण प्रवरकरिणं प्रवरकरिणं वाहयत्येन्धभारम् । चिन्तारत्नं विकिरति कराद् वायसोड्डापनार्थम् यो दुष्प्राप्यं गमयति मुधा मर्त्यजन्म प्रमत्तः ॥ [ जो प्रमादी ममुष्य अपने दुर्लभ जीवन को व्यर्थ गँवा रहा है, वह सोने की थाली में धूल डाल रहा है- अमृत से पैर धो रहा है, और श्रेष्ठ हाथी से ईंधन का भार उठवा रहा है और चिन्तामणि रत्न को कौए उड़ाने के लिए हाथ से फेंक रहा है ] किसी वज़ीर की सेवा से प्रसन्न होकर एक बार बादशाह ने एक मूल्यवान् छाल भेंट की उसे । शाल ओढ कर वज़ीर अपने घर जा रहा था। ठंड के दिन थे । वज़ीर को जुकाम हो रहा था । उसने शाल से ही अपनी नाक पोंछ ली । For Private And Personal Use Only

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