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२४६ [शोक, शत्र और भय से रक्षा करने वाला तथा प्रेम और विश्वास का पात्र- ऐसे 'मित्र' इन दो अक्षरों से बने रत्न को किसने बनाया ?] मित्र नारियल के समान भीतर से कोमल हृदय वाले होते हैं :
नारिकेल समाकारा दृश्यन्ते हि सुहृज्जनाः ।
अन्ये बदरिकाकारा बहिरेव मनोहराः ।। [अच्छे मित्र नारियल के समान आकार वाले अर्थात् भीतर से कोमल मधुर और ऊपर से कठोर-बेस्वाद होते हैं । दूसरे (कुमित्र) बेरके समान ऊपर से ही मनोहर होते हैं, भीतर से अत्यन्त कठोर और स्वापहीन]
सुकवि श्री भर्तृहरि ने अच्छे मित्र के लक्षण इस श्लोक में एक साथ बताये हैं : पापान्निवारयति योजयते हिताय
गुह्य निगृहति गुणान्प्रकटीकरोति । प्रापद्गतं च न जहाति ददाति काले
सन्मित्रलक्षणमिदं प्रवदन्ति सन्तः ॥ [सज्जन अच्छे मित्र के लक्षण इस प्रकार बताते हैं- वह पाप से हमें बचाता है, भले कार्यों में हमें लगाता है, गुप्त बात को छिपाता है, गुणों को प्रकट करता है, संकटों में हमारा त्याग नहीं करता और समय पर सहायता करता है।
सुख और दु:ख में से किसी एक को मित्र बनाने के लिए कहा जाय तो आप किसे मित्र बनाना पसन्द करेंगे ? - सभी व्यक्ति सुख को पसन्द करेंगे; किन्तु महापुरुषों ने दुःख को मित्र बनाया था :
सुखिया सब संसार है, खावै अरु सोवै । दुखिया दास कबीर है जागै अरु रोवै ॥
दु:ख को मित्र बनाकर ही राम, कृष्ण, महाबीर, बुद्ध आदि महापुरुष बने । अनार्य देश में प्रभु महावीर ने भूख,
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