Book Title: Mitti Me Savva bhue su
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 266
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५४ आयान्ति यान्ति च परे ऋतव : क्रभेण । सज्जातमेतदनुयुग्म मगत्बरं तु ॥ वीरेण वीरधवलेन विना जनानाम् । वर्षा विलोचनयुगे हृदये निदाध: ॥ [ अन्य ऋतुएँ तो क्रमश: आती-जाती रहती हैं; परन्तु पराक्रमी वीरघवल के बिना ( उनके अभाव के कारण ) आज दो ऋतुएँ स्थायी हो गई है; लोगों की आँखों में वर्षा और उनके हृदय में ग्रीष्म ( निदाघ ) ] पिथियस और डेमन को मित्रता से क्या लाभ हुआ ? सो भी स्मरणीय है । किसी आरोप में पिथियस को जब मृत्युदण्ड दिया गया, तब उससे मित्र डेमन ने आगे बढ़ कर पन्द्रह दिन की अवधी के लिए उसकी जमानत दी, जिससे वह घर जाकर अपने परिवार से मिल सके और उसके पालन-पोषण का पूरा प्रबन्ध करके लौट सके । राजा ने इस शर्त पर जमानत मंजूर की कि यदि निर्धारित दिनांक तक पिथियस लौट कर नहीं आया तो उसके बदले डेमन को फांसी पर लटका दिया जायगा । साथ ही पिथियस के बदले डेमन को जेल में रहना होगा । डेमन और पिथियस दोनों ने शर्तें मान लीं । पिथियस छोड़ दिया गया । डेमेन पकड़ लिया गया । वात ही बात में दो सप्ताह बीत गये : पन्द्रहवाँ दिन आ गया, परन्तु पिथियस नहीं आया । वह रास्ते में लौटते समय अन्धड़ से घिर जाने के कारण सरलता से नहीं चल सका, इसलिए कुछ देरी हो गयी । उधर डेमन को वधस्थल पर ज्यों ही ले जाया गया, त्यों ही डेमन के प्राण बचाने के लिए भागता -दौड़ता - हांफता हुआ पिथियस वहाँ आ पहुँचा । उसने ठीक क्षण पर चिल्लाकर कहा : " डेमन को छोड़ दीजिये । मैं आ गया हूँ ।" 1 For Private And Personal Use Only

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