Book Title: Mitti Me Savva bhue su
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 250
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३८ एक राजस्थानी दोहा है : मिले मोकला मिनख परण मिले न मिनखाचार । फोकट फोनोग्राफ ज्यू वातारो व्यवहार ॥ मनुष्य तो बहुत से मिल जाते हैं, किन्तु मनुष्य के योग्य आचरणशीलता (मानवता) नहीं मिलती। फोनोग्राफ के समान केवल बातों का व्यवहार ही देखा जाता है। जीवन में उतरे नहीं, दिये हुए व्याख्यान । गुरुता वहाँ न पा सकी, फोनोग्राफ समान ॥ -सत्येश्वर गीता जो व्यक्ति प्रवचन देता है, किन्तु दिये हुए उपदेशों को अपने जीवन में नहीं उतारता, उसमें गुरुत्व नहीं है। जैसे फोनोग्राफ या केसेट से भी लोग प्रवचन सुन लेते हैं, परन्तु उसे 'गुरु' मान कर वन्दन नहीं करते। इसी प्रकार मनुष्यता के व्यवहार के बिना भी किसी को मनुष्य नहीं माना जा सकता। एक जगह कुछ मज़दूर लकड़ी के एक भारी लट्ठ को ढकेलने का प्रयास कर रहे थे, किन्तु उसमें उन्हें सफलता इसलिए नहीं मिल रही थी कि उसमें एक आदमी के बल की और ज़रूरत थी। उसी समय उधर से एक धुड़सवार आ निकला । मजदूरों की परेशानी को समझ कर उसने पास ही खड़े अफसर से कहा कि वह उनकी मदद कर दे। अफसर ने कहा : “महोदय ! मैं अफसर हूँ, मजदूर नहीं। मेरा काम हुक्म देना है, हाथ बँटाना नहीं, समझे ?" For Private And Personal Use Only

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