Book Title: Mitti Me Savva bhue su
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 235
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२३ घोड़ा एक पेड़ से बाँध कर बादशाह ने खेतमें प्रवेश किया। वहाँ मालकिन से प्रार्थना की : "माताजी ! मैं एक भूखा-प्यासा मुसाफिर हूँ। यदि आप एक गन्ना दे दें तो मैं उसे चूसकर अपनी भूख-प्यास दोनों मिटाने में थोड़ी सफलता पा सकता हूँ।" । बुढिया बोली : “बैठो बेटा ! इस खाट पर बैठकर थोड़ विश्राम कर लो। गन्ना चूसने में तुम्हें बहुत समय लगेगा। मैं तुम्हें गन्ने का रस ही ला देती हूँ। पीकर अपनी भूख-प्यास पर काबू पा लेना।" यह कह कर बुढियाने ढाक के पत्तों में से एक तोड़ा। उसका दोना बनाया। दोना लेकर वह एक गन्ने के पास गई । गन्ने को काँटा चुभोया और ज्यों ही काँटा बाहर निकाला, रस की धार छूट पड़ी। उससे दोना भर लिया और काँटे से पुनः छेद बन्द करके बादशाह के हाथ में दोना दे दिया। गन्ने का स्वादिष्ट रस पीते हुए बादशाह ने विचार किया कि किसानों को कुदरत कितनी अच्छी फसल देती है ! मैं महल में लौटकर इनका टैक्स दूना कर दूंगा। इसके बाद रसका एक दौना और माँगा। बुढिया गई भी; परन्तु इस बार आठ-दस गन्नों में काँटे चुभोने पर एक दौना बड़ी मुश्किल से भर पाया। इसका कारण पूछने पर बुढियाने बताया कि या तो मेरे भाग्य बदल गये हैं या यहाँ के बादशाह की नीयत बदल गई है। For Private And Personal Use Only

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